शुक्रवार, मई 13, 2011

जीवन और मृत्यू का द्वन्द



छिड़ा है  एक अंतहीन द्वन्द ,
जीवन और मृत्यू  के मध्य |
मृत्यु  का कहना 
मेरा अस्तिव ,
करता है तुम्हें सीमित |
और  क्रूर अट्ठाहस 
प्रत्युतर में ,
जीवन का कहना  
मात्र तुंम हो, एक पड़ाव 
मेरी यात्रा के |
और  मधुर मुस्कान |
हाँ , एक बार अवश्य 
आना है तुम्हारे पास 
करने अंतिम विश्राम |
क्योंकि करना है मुझे ,
नियति का सम्मान |
और छोड़ जाऊंगा 
फिर एक उत्तर विहीन प्रश्न, 
किसकी जय, किसकी पराजय ?



31 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन मृत्यु के द्वन्द को समेटे गहन अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  2. यही प्रश्न हमेशा होता है अनुत्तरित ... फिर भी !

    जवाब देंहटाएं
  3. आद. सुनील जी,
    जीवन और मृत्यु के बारे में आपने अपनी कविता में एकदम मौलिक भाव का प्रतिपादन किया है !
    कसी हुई भावपूर्ण रचना के लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. जब अन्त हो तब जय पराजय का क्या औचित्य।

    जवाब देंहटाएं
  5. ..इस प्रश्न का ज़वाब ही तो कहीं नहीं मिलता..गहन भावों से ओतप्रोत बहुत सटीक और सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. jeevan mrityu ke yatharth ko batati hui saarthak rachanaa.bahut badhaai aapko .mera blog main aane ke liye shukriyaa.aasha hai aage bhi aapke sandesh meri rachanaon ko milte rahenge.thanks

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रियवर सुनील जी
    सादर अ भिवादन !

    जीवन और मृत्यु का सत्य आपकी रचना के माध्यम से उद्घाटित हुआ है …

    किसकी जय , किसकी पराजय! इस प्रश्न का सच में कहां है उत्तर ??
    अच्छी रचना हेतु आभार!

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  8. जीवन के अंतिम सच को आपने शब्दों में उजागर किया
    बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  9. 'life' and 'death' are nodes and antinodes of the wave of life,both of them have to go in alternate fashion to make a complete propagation of life .

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

    जवाब देंहटाएं
  11. सनातन प्रश्न का समाधान प्रश्न के साथ अच्छा लगा। साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  12. किसकी जय किसकी परा -जय !
    संपूरक हैं दोनों ,परस्पर ,पति पत्नी से ।
    प्रश्न निरंतरता का है ।
    अस्तित्व का है होमो -सेपियंस के .

    जवाब देंहटाएं
  13. Bahut sunder kavita . Ise jeevan ke safar ka aakhir padav hee hai mratyu .

    Na jay na parajay .

    जवाब देंहटाएं
  14. जीवन है तभी जब मृत्यु है एक न हो तो दूसरा हो ही नहीं सकता, जैसे रात के बिना दिन नहीं !

    जवाब देंहटाएं
  15. दार्शनिक दृष्टिकोण से युक्त सुंदर कविता |

    जवाब देंहटाएं
  16. भाई सुनील जी सुनहरी कलम ब्लॉग पर मैंने कुमार रवीन्द्र जी की कविताएं जो पब्लिश किया था वह ब्लागर के द्वरा गायब कर दी गयी उस पोस्ट के साथ सभी बहुमूल्य कमेंट्स भी गायब हो गए |इसलिए दुबारा प्रकाशित किया |पोस्ट के नीचे मैंने नोट भी लिखा है शायद आपने ध्यान नहीं दिया |पुनह कमेंट्स के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  17. सुनील जी ...आपकी कविता पसंद आई. आपने सत्य को ही प्रस्तुत किया है. इस उत्तम कोटी की रचना के लिए आपको बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत खूब .. मृत्यु और जीवन की अजर आत्मा का संवाद ... लाजवाब रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  19. great sir!!!

    bas itna kaha ja skta hai ki manjil to mrityu hi hai bas umra guzar jaati hai waha tak pahuchte pahuchte.....

    waise aapki is soch aur abhivyakti ko naman karta hun, utkrisht kalpna.....

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  21. नि:शब्‍द कर दिया ..बहुत ही प्रभावशाली रचना है..

    जवाब देंहटाएं
  22. जीवन को भरपूर जिया जाए और मृत्यु का सहजता से वरण हो। हमारी भी जय-जय तुम्हारी भी जय-जय!

    जवाब देंहटाएं