बात आज से लगभग बाईस तेईस साल पुरानी है हमारे पड़ोस में एक ऍम . के . वशिष्ठ नाम
के व्यक्ति रहते थे |उनके यहाँ जब दूसरी कन्या ने जन्म लिया तो आस पड़ोस के लोग शोक
मिश्रित बधाई देने पहुँचने लगे | कोई कहता की घर में लक्ष्मी आयी है | किसी का कहना था
की बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं ,कुछ लोग तो एक कदम आगे बढ़ कर उनकी बेटियों की
तुलना इंदिरा गाँधी से भी कर देते थे |
समय बीतता गया वशिष्ठ जी ने अपनी छोटी सी नौकरी में ही उन दोनों को शिक्षा दिलाई |
हाँ ! इस बीच उनकी पत्नी का समुचित इलाज ना होने के कारण लम्बी बीमारी के बाद देहांत
हो गया | वशिष्ठ जी ने हिम्मत नहीं हारी और ना ही उनकी बेटियों ने उन्हें निराश किया|
उच्च शिक्षा प्राप्त कर जल्दी ही अच्छी नौकरी भी कर ली | पिता ने सुयोग्य वर देख कर उनका
विवाह करके अपने को निवृत कर लिया | और रह गए नितांत अकेले ................
इस बीच उनके मिलने वाले आकर उनका हाल चाल पूछते और उनको सामाजिक मान्यताओं
का वास्ता दे कर समझाते कि" कन्यादान के बाद कन्या के घर का पानी भी ग्रहण नहीं करना
चाहिए यह पाप नहीं घोर पाप है "| अत: बेटी के मना करने के बाद भी जिद करके अपने घर
चले आये | कुछ दिनों के बाद फिर बीमार पड़े अब मोहल्ले वाले आकर दया दिखाते और
कहते अच्छा होता कि एक बेटा होता !कोई उन्हें ओल्ड एज होम जाने कि सलाह देता |
है | और इस प्रश्न के उत्तर की भी तलाश है उन्हें कहाँ जाना चाहिए ?
उच्च शिक्षा प्राप्त कर जल्दी ही अच्छी नौकरी भी कर ली | पिता ने सुयोग्य वर देख कर उनका
विवाह करके अपने को निवृत कर लिया | और रह गए नितांत अकेले ................
बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ ने उनको अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया | जैसे बेटी को सूचना
मिली तुरंत ही अपने घर ले जाकर उनका इलाज करवा कर अपने घर दो महीने रखा |इस बीच उनके मिलने वाले आकर उनका हाल चाल पूछते और उनको सामाजिक मान्यताओं
का वास्ता दे कर समझाते कि" कन्यादान के बाद कन्या के घर का पानी भी ग्रहण नहीं करना
चाहिए यह पाप नहीं घोर पाप है "| अत: बेटी के मना करने के बाद भी जिद करके अपने घर
चले आये | कुछ दिनों के बाद फिर बीमार पड़े अब मोहल्ले वाले आकर दया दिखाते और
कहते अच्छा होता कि एक बेटा होता !कोई उन्हें ओल्ड एज होम जाने कि सलाह देता |
मगर बेटियां इसको मानने को तैयार नहीं थीं | इसी कशमकश में कुछ दी बीत गए अब वह
कहाँ जाएँ | अचानक एक दिन वह कहाँ चले गये, किसी को नहीं मालूम, उनकी तलाश जारीहै | और इस प्रश्न के उत्तर की भी तलाश है उन्हें कहाँ जाना चाहिए ?
वाकई मुश्किल सवाल है!
जवाब देंहटाएंkya kehne
जवाब देंहटाएंबेटियों के घर जाना चाहिये।
जवाब देंहटाएंbetiyon ke paas ..... santan putra ho yaa putri , kya fark padta hai
जवाब देंहटाएंयही तो विडम्बना है!
जवाब देंहटाएंये हमारे समाज के दकियानुसी ख्यालों और रिवाजों का कच्चा चिट्ठा है। मेरी समझ से तो ये समाज ही सब बुराईयों की जड़ में है। जब एक बेटा अपने मॉ बाप का ख्याल रख सकता है तो एक बेटी क्यों नही। क्या शादी हो जाने के बाद बेटियों का मॉ बाप पर से अधिकार खत्म हो जाता है। आपकी रचना इस अंधी दुनिया के बहुत ही करीब है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अमित जी बेटियाँ तो पिता को रखना चाहती हैं| लेकिन पिता की मजबूरी है की कन्यादान के बाद उसका अधिकार नहीं रहता है |यह हमारी सामाजिक मान्यता है |
जवाब देंहटाएंकुछ मजबूरियां तो जबरदस्ती ओढ़ ली जाती हैं.
जवाब देंहटाएंसामाजिक मान्यताएं भी हमेशा समय और परिस्थिति
अनुसार बदलती रहतीं हैं.जो भी हो समयानुसार और परस्थिति
अनुसार हो तो अच्छा है.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
मेरे ख्याल से भी बेटियों के पास ही जाना चाहिए।
जवाब देंहटाएं---------
मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
बेटियों के पास ...सामजिक मान्यताएं कुछ भी हों ... यदि बेटी और दामाद को कोई परेशानी नहीं है तो उन्हें पराया क्यों माना जाये ? बेटियाँ कोई वस्तु नहीं हैं जिन्हें दान कर दिया ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक किस्सा।
जवाब देंहटाएंवैसे आज के दौर में बेटियों और बेटे में कोई अंतर नहीं रह गया है।
बल्कि बेटियां बेटों से ज्यादा समझदार और काबिल होती हैं।
मेरी एक ही बेटी है और मैंने कभी बेटे की लालसा नहीं की,
मौजूदा किस्से में इन सज्जन को लोगों की बातों का सुनने के बजाय अपने दिल का सुनना चाहिए था और यदि वे ऐसा करते तो उनका दिल जरूर कहता, बेटियों के पास जाओ आप...
बहुत मार्मिक घटना.इसीलिए कहा जाता है सुनिए सब की, करिये वो जो आपका मन सही कहे.
जवाब देंहटाएंहमारे यहां जाटो में एक कहावत है कि रांड(विधवा) तो रंडापा काट ले, जो ये रंडुवे उसे काटने दे तो,
जवाब देंहटाएंआह.............. आँखों के सामने से गुजर गया पूरा वाकया............
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रसंग. सचमुच अजीब विडम्बना है और अजब मान्यताएं जिन्हें अभी भी पाले जा रहे हैं हम. सुंदर पोस्ट के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंHan..Bilkul betiyon ke ghar hi jana chahiye..... Samajik manytaon ko rishton se bada nahin mana jana chahiye....
जवाब देंहटाएंsawal muskil tha..per sirf samaj ke liye... mata-pita ke bacche to brabar hi hote hai..bilkul betiyo ke pas hi jana chaiye...
जवाब देंहटाएंये मेरी कहानी है आज जब बीमार हूँ एक हाथ से काम नही कर पा रही तो मेरे आगे भी यही दुविधा है। एक हाथ से नेट पर भी इतना काम नही होता। जवाब मिले तो मुझे भी सूचित करें।वैसे तो आज तक हिम्मत नही हारी थी लेकिन अब--- अधा घन्टा लगा एक हाथ से लिखने मे बस इतना ही----
जवाब देंहटाएंयदि शरीर सुरक्षित हो और बेटी के साथ ही दामाद भी आपकी आमद स्वीकार करने को तैयार हो तो सामाजिक मान्यताएँ चाहे जो हों पूर्ण स्वस्थ होने तक तो बेटी-दामाद के घर ही जाना चाहिये ।
जवाब देंहटाएंनिस्संदेह बेझिझक उन्हें बेटियों के घर जाना चाहिये था....
जवाब देंहटाएंकिसी के कहने से दुनिया नहीं चलती, लोगों का तो काम ही है कहना...
उन्हें अपनी बेटियों के पास जा कर जीवन बिताना चाहिए। पुरानी और निरर्थक सामाजिक रूढ़ियों को मानने के दिन अब लद गए।
जवाब देंहटाएंसीधा सा जवाब है बेटियों के पास रहें।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (30-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बेटॆ का अफ़सोस तो बेवजह है क्योंकि आज का बेटा अपनी बीवी की बात सुनता है। बेटी होने से वह अपने पति को अपने मन की बात मनवा लेगी और अपने पिता को साथ रख सकेगी। सवाल यह है कि क्या बाप की अंटी में कुछ है?
जवाब देंहटाएंउन्हें हमेशा छेद ढूँढने वाले समाज की चिन्ता न करनी चाहिये ।
जवाब देंहटाएंकन्यादान की अवधारणा में कितनी व्यवहारिकता है, इस पर पुनर्विचार होना चाहिये ।
वशिष्ठ अंकल को हमारे घर आकर रहना चाहिए... उन्हें समझाइये ... जब बेटियों के पतियों को पता चलेगा कि उनके ससुर जी किसी अपरिचित के जाकर रहने लगे हैं तो वे अपने यहाँ रखने के लिये जरूर गंभीर हो जायेंगे ... देख लीजिएगा... बेटियों की इच्छा के साथ जब उनके पतियों की विशिष्ट इच्छा का समावेश हो जायेगा तो वे सम्मान से रह पायेंगे. :)
जवाब देंहटाएंरोचक और विचारोत्तेजक वाकया ... यदि सामाजिक मान्यताएं यह कहती है कि पिता बेटी के घर नहीं रह सकते तो ऐसी मान्यता का त्याग देना चाहिए ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पे आके टिपण्णी करने का शुक्रिया ...
जिसके कोई बेटा नहीं है, उसका बेटा है अनवर जमाल।
जवाब देंहटाएंउन्हें अनवर जमाल के पास आना चाहिए।
यही इसका सही जवाब है।
निर्मला दीदी के लिए भी यही है सही जवाब।
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
ये "चाहिए "ही भारती समाज को पंगु बना रहा है .पुत्र केन्द्रित समाज अपनी मौत मर रहा है .पुत्र बुडापे की लाठी तो क्या बनतें हैं ,लाठी लेकर ज़रूर आजातें हैं ,बस लाठी हाथ में उनकी पत्नी के होती है .हम तो सेवा निवृत्ति के बाद जब तब अपनी बेटी के पास चले आतें हैं .एक मर्तबा में ५ -६ महीने तो रहके जातें हैं कमसे कम .ज़माना बदल गया है दोस्त .कौन से समाक की बात कर रहें हैं आप ,उपालम्भी,ताना कश समाज सिवाय ताना कशी के देता क्या है ?
जवाब देंहटाएं४३३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,केंटन (मिशिगन )४८ १८८ -१७८१ .
अनिल कुमारजी !आनुवंशिक तौर पर भी बेटियाँ बाप के ज्यादा करीब होतीं हैं इसीलिए कहा गया है -
जवाब देंहटाएंमाँ पर पूत पिता पर घोड़ा ,
बहुत नहीं पर थोडंम थोड़ा ।
यहाँ घोड़ा शब्द लोकोक्ति में बेटी के लिए ही आया है .क्या बेटियाँ आनुवंशिक विरासत नहीं होती .वल्दियत का पता लगाने के लिए "डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग नहीं की जाती "?
बाप के आनुवंशिक हस्ताक्षर होतीं हैं बेटियाँ .फिर उनके यहाँ चले आने में क्या हर्ज़ है .वहां जाइयेगा ,रहिएगा जहां आपकी ज़रुरत है .हम तो वैसा ही कर रहें हैं .सरल जीवन जिया लो प्रो फ़ाइल तो सेवा निवृत्ति के बाद कोई तंगी नहीं है .पी ऍफ़ ,ग्रेच्युइति की मार्फ़त काफी मिला .गुज़र होती है ,बेटी के पास ज़रा सलीके से होती है .
logo ki baton pe dhyaan denge to koi rasta nahi milega ,santaan to santaan hai bhed kaisa .bekaar ki baton se bachkar anjaan raho par nikal gaye honge .
जवाब देंहटाएंwo jahan bhi ho bas jaldi hi ghar laut aayen... unki betiyan bahot pareshaan hongi... samaaj ke swaalon ka koi mukammal jawaab nahi hota... jitne munh utni baaten, utne sawaal... jitni jald ho sake, please apni betiyon ke paas laut aayen...
जवाब देंहटाएंकोई भी माँ-बाप अपने बच्चों पर बोझ बनना पसंद नहीं करते । पर अगर परिस्थिति की मांग है और बेटियाँ चाहती भी हैं तो पिता को किसी भी मान्यता की रत्ती भर भी परवाह नहीं करना चाहिए और ऐसे वक्त में बेटियों के पास होना चाहिए। विचारणीय प्रश्न पोस्ट किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंअपनी बेटियों के पास जा कर जीवन बिताना चाहिए।
जवाब देंहटाएंपुरानी मान्यताओं को बदलना चाहिए..अपनी बेटियों के पास जा कर जीवन बताना कोई पाप नहीं है.
जवाब देंहटाएंदेशकाल परिस्थिति के अनुकूल मान्यताएं बदल जाती है यदि फिर भी मज़बूरी है तब भी विपतिकाल में सभी मान्यताएं वर्जित हो जाती हैं. अर्थात बेटियों के साथ रहना चाहिए
जवाब देंहटाएंबेटा-बेटी में फर्क जैसी रूढ़िवादी विचारधारा शत प्रतिशत त्याज्य है ...
जवाब देंहटाएंवो अपनी बेटी के घर ही गए होंगे .....
सुनील जी मार्मिक ह्रदय को छू लेने वाला लेख काश आज तो लोग अन्धानुकरण न करें उन्हें खोजें ऐसे लोगों को निश्चित ही बेटियों के पास शीघ्र जाना श्रेयस्कर है -बधाई हो सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंशुक्ल भ्रमर 5
बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने ------- हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंsunil bhai ji
जवाब देंहटाएंmain aadarniy rakesh sir v sandhya ji ki baat se puri tarah sahmat hun . aaj jabki hamara samaj itna badal raha hai fir bhi kchh andh vishwasi logo ke chalte abhi bhi apne me purtaya badlav nahi la paya hai .
jinke bete hain unhi maa-baap ke dil se puchhiye ki vo kitne waqt apne mata pita ko apne saath rakhne ke liye taiyaar hain .betiyan to fir bhi aaakar dekh -bhal kar sewa puri tanmay se karti hain .agar soubhagy se unhe achha ghhar -var mil gaya to .
aaj bete betiyon me jab koi fark nahi samjha jaata to jitna haq beto ka banta hai utna hi betiyon ka bhi. nisandeh betiyan apne janmdaata ko apne paas rakh sakti hain .aur unki puri jimmedaari bhi utha sakti hain .
bahut hi behtreen sawal uthaua hai aapne
bahut hi achha laga
ek betreen lekh ke liye hardik badhai.
dhanyvaad sahit
poonam
He must go and live with his daughters.
जवाब देंहटाएंभावमय करते शब्दों के साथ ...विचारात्मक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंअजी उन्हे अपनी बेटियो के घर ही जाना चाहिये,दुनिया को कभी भी टिक कर नही रहने देती,
जवाब देंहटाएंको नही तो पढे*
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