आज एक पुरानी बाल कविता पुन : प्रकाशित और पुन : सम्पादित प्रस्तुत है |
कारण ,इसके भाव मुझे बहुत अच्छे लगते है | अब देखना है क्या ख्याल है आपका !
हरा भरा एक नन्हा पौधा ,
लगा मेरे उपवन में |
जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
खिल जाते मेरे मन में |
धूप यह खाता , पीता पानी
यही तो इसका दाना पानी |
बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा
जब घना वृक्ष यह बन जायेगा |
तब किसी राह का ,
थका मुसाफ़िर, छाया में इसकी
नींद चैन की सो जायेगा |
sunder, ati ,sunder
जवाब देंहटाएंजितनी दफे पढो उतनी ही दफे आनंदित करने वाली कविता । नन्हे पौधे का छायादार बृक्ष बन जाना और मुसाफिर को विश्राम देना । यह कविता पौधों पर ही नहीं इन्सान पर भी लागू होती है वरना वो कहा है न
जवाब देंहटाएंबडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड खजूर
पंथी को साया नहीं फल लागे अति दूर
हर पौधा अपने जीवन में यही सोचता है।
जवाब देंहटाएंवाह ! अनुपम प्रेरणादायक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबचपन के संस्कार आगे पेड़ रूप में विकसित हो
छाया प्रदान करतें हैं.नन्हे पौधे के माध्यम से
सुन्दर अभिव्यक्ति की है आपने.
मेरे ब्लॉग पर मेरी नई पोस्ट आपका इंतजार कर रही है.
'सरयू' स्नान का न्यौता है आपको.
आज के इस युग में पता नहीं इस नन्हें पौधे को वृक्ष बनने दिया जाएगा या नहीं ॥
जवाब देंहटाएंबच्चों को राह दिखाने वाली एक अच्छी कविता .आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hee badhiya.badon ke bhee kaam ki hai
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली रचना है...
जवाब देंहटाएंबाल-कवि श्रीमान सुनील कुमार जी आपकी ये रचना वाकई बच्चों को आनंद देगी. मेरे अंतर में बैठे बालमन ने तो इसे गुनगुनाकर सुख ले लिया लेकिन यदि कोई बालक प्राकृतिक रुचियों का हुआ तो अवश्य इससे नाता जोड़ लेगा.
जवाब देंहटाएंbahut sunder .bemisaal rachanaa.man ko aakandit kar gai.yeh jindagi ke uper bhi laagoo hoti hai.badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog and leave a comment also thanks.
agar ye bal-kavitaa hai to badon kee kavitaa kyaa hogee.. kavitaa ka sandesh sabke liye hai!!
जवाब देंहटाएंदिल को छू जाने वाली अच्छी रचना है...
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (28.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
वाह सुंदर.
जवाब देंहटाएंसुनील जी ,
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी आपकी कविता !
बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालकविता...
बाल कविता लिखना बहुत कठिन काम है।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कविता ।
बचपन का ही पल्लवन है विकास और हमारे संस्कार ,हवा पानी के संग मुस्कुराना अपने परिवेश में समाविष्ट हो खुद ही अपनी खाद बन जाना कोई इस नन्ने पौधे से सीखे .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
अब क्या दोगे प्यार की परिभाषा?
हर बीज में सारी संभावनाएं होती है .ये हमारी भी जिम्मेवारी बनती है ...हम उसे वृक्ष बनने दे चाहे वो हमारे बच्चे ही क्यों न हो ...मधुर रचना
जवाब देंहटाएंBahut Sunder Baal Kavita...
जवाब देंहटाएंअभिनव सन्देश देती हुई रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर है ये बाल कविता……. धन्यवाद
जवाब देंहटाएं. बहुत ही सुन्दर और प्यारा-प्यारा है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंवृक्ष पिता सम पालहीं नर खग आश्रय देय
जवाब देंहटाएंमीठे फल पुनि देत है, नाहि कछु उनते लेय!
श्रेष्ठ भाव समेटे हुए है आपकी छोटी सी कविता .
बाल कविता पर बडों को इसे समझना होगा
जवाब देंहटाएंसुंदर
शुभकामनाएं आपको
काफी सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंबच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी एक सीख भरी कविता !!
बहुत सुन्दर कविता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है
जवाब देंहटाएंदोबारा पढ़ा, आनंद लिया। वाह! किसी भी पुराने को नई उमंग नए उत्साह से पढ़ो तो वह आनंद वर्षा करती है। :)
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