आज एक पूर्वप्रकाशित रचना प्रस्तुत है कारण यह है कि यह रचना मेरे उस समय की है |
जब मेरे ब्लॉग पर पाठकों कि संख्या बहुत कम होती थी|
जब हम कविता लिख रहे होते है तब हम शब्द पकड़ते है|
जब रचना लिख चुके होते है तब श्रोता पकड़ते है |
इस धर पकड़ के खेल का अंत तब हो जाता है |
जब किसी नवोदित कवि की पकड़ में कोई श्रोता आ जाता है |
जब वह कवि श्रोताओं के पकड़ने की कला में पारंगत हो जाता
तब जाकर किसी कवि-सम्मलेन का निमंत्रण पाता है |
कवि-सम्मेलन में सबसे पहले सरस्वती वंदना की बारी आती है |
पहले एक कवयित्री सरस्वती वंदना करती है |
फिर चार रचनाओं के बाद भी बंद ना करती है |
नवोदित कवि हर रचना पर ज़ोर से ताली बजाता है |
अपने मंच पर होने की याद, संचालक को दिलाता है |
तब जाकर वह कवि मंच पर पुकारा जाता ,
और देशी तमंचे की तरह एक फायर करके वापस आता है |
फिर मंच पर एक स्थापित कवि आता है |
वह मशीन गन की तरह फायर पे फायर करता जाता है |
कार्यक्रम के बाद स्थापित कवि को चेक थमा कर ,
कार में बिठाया जाता है |
और नवोदित कवि को धन्यवाद दे कर,
उसके रूट की बस का नंबर बताया जाता है |
थका हारा कवि घर आता है |
मेज पर पड़े हुए संपादक के खेद सहित पत्रों को
अपना मुंह चिढ़ाता हुआ पाता है |
आज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
अपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
जब मेरे ब्लॉग पर पाठकों कि संख्या बहुत कम होती थी|
जब रचना लिख चुके होते है तब श्रोता पकड़ते है |
इस धर पकड़ के खेल का अंत तब हो जाता है |
जब किसी नवोदित कवि की पकड़ में कोई श्रोता आ जाता है |
जब वह कवि श्रोताओं के पकड़ने की कला में पारंगत हो जाता
तब जाकर किसी कवि-सम्मलेन का निमंत्रण पाता है |
कवि-सम्मेलन में सबसे पहले सरस्वती वंदना की बारी आती है |
पहले एक कवयित्री सरस्वती वंदना करती है |
फिर चार रचनाओं के बाद भी बंद ना करती है |
नवोदित कवि हर रचना पर ज़ोर से ताली बजाता है |
अपने मंच पर होने की याद, संचालक को दिलाता है |
तब जाकर वह कवि मंच पर पुकारा जाता ,
और देशी तमंचे की तरह एक फायर करके वापस आता है |
फिर मंच पर एक स्थापित कवि आता है |
वह मशीन गन की तरह फायर पे फायर करता जाता है |
कार्यक्रम के बाद स्थापित कवि को चेक थमा कर ,
कार में बिठाया जाता है |
और नवोदित कवि को धन्यवाद दे कर,
उसके रूट की बस का नंबर बताया जाता है |
थका हारा कवि घर आता है |
मेज पर पड़े हुए संपादक के खेद सहित पत्रों को
अपना मुंह चिढ़ाता हुआ पाता है |
आज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
अपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
badhiya hai, sunil ji...
जवाब देंहटाएंवाह. बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंवाह सर आपने एक कवि के दर्द को खूब पकड़ा है.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना. आभार.
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंसटीक चित्रण।
जवाब देंहटाएंOnly an established poet like you can write such an appealing creation ! Beautiful !
जवाब देंहटाएंsunder aur satya kaha hai .............
जवाब देंहटाएंसटीक बात लिखी थी आपने , अच्छी कविता तब भी और आज भी निरंतर ये कोई अतिशयोक्ति नहीं बधाई
जवाब देंहटाएंसटीक वर्णन ..
जवाब देंहटाएं@आज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
जवाब देंहटाएंअपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
सहज अभिव्यक्ति!
बहुत खूब, सबके मन का कष्ट रहा होगा यह।
जवाब देंहटाएंखामोश दर्द..
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई भाई ||
इस दर्द कॊ हम भी झेल रहे हैं।
जवाब देंहटाएंEkdum Satik.....Sundar varnan...
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
कवि यदि फंसने-फंसाने का धंधा छोड़ दे और मस्त हो जाये अपनी रचनाएँ लिखते समय ही...तब उधारी का झंझट ही खत्म..
जवाब देंहटाएंआज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
जवाब देंहटाएंअपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
Aah!
मजेदार --
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है बहुत सरल शब्दों में आपने हर नए लेखक के मन की बातों को कह दिया,,, बहुत खूब...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंवास्तविकता का दर्शन और दर्द तो है ही .....रचना की विशेषता ये है की इन्ही राहों से न जाने कितने निकले है!! .....शायद हर पत्थर को मूर्ति बनाने के लिए शिल्पकार की हथोडी का सामना करना ही पड़ता है ......काव्य का दर्द से पुराना नाता है !!!!
जवाब देंहटाएंvery sarcastic... really a good one !!
जवाब देंहटाएंअब अधिक टिप्पणियां मिल गई सुनिल भाई... बधाई हो:)
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiya hai sunil ji
जवाब देंहटाएंकमाल का लिखते हैं आप।जीवन का कटु सत्य है....... ।
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात कही ....अच्छी कविता!!!!!
जवाब देंहटाएंचंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी से सहमत हूँ :)
जवाब देंहटाएं......वैसे सरल शब्दों में बड़ी बात कही है !
नवोदित कवि की पीड़ा को बड़े दिलचस्प तरीके से दर्शाया है आपने . बहुत मजेदार .
जवाब देंहटाएंबढ़िया सधी हुई रचना .
जवाब देंहटाएंbahut pasand aayee.....
जवाब देंहटाएंnaye lekhak kee maansik awastha ki bahut rochak abhivyakti.
जवाब देंहटाएंmere blog 'saajha-sansaar' par aapki aatmiye pratikriya mili, aabhar.
shubhkaamnaayen.
सीधे और सरल शब्दों में रोचक ढंग से गहरी बात लिख दी है आपने .....बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
जवाब देंहटाएंसुनील जी बहुत बढिया व्यंग ...आभार
आज वह अपनी रचनाओं को निठ्ल्लें पुत्र के समान पाता है |
जवाब देंहटाएंअपने भविष्य के बारे में सोंच कर वह वर्तमान में मर जाता है |
धारदार व्यंग. बढ़िया प्रस्तुति.
नवोदित कवि का दर्द :) सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंaapne wastavikata ka sundar bayan kiya
जवाब देंहटाएं:-)
जवाब देंहटाएंनए कवि की दशा ( दुर्दशा ) का बढ़िया चित्रण ...
शुभकामनायें आपको !
नए कवियो कि दशा का बहूत हि बढीया चित्रण किया है
जवाब देंहटाएंबहूत खूब ..सार्थक रचना
कल 20/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह. बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंकवियो कि दशा का बढीया चित्रण.
सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत खूब....एक दम सटीक व्यंग...
जवाब देंहटाएंपढ़ कर मज़ा भी आया ,दिल तार तार भी हुआ..