वाह क्या खूब कहा है !!! परवरिश को लेकर माता-पिता दोनों ही जिम्मेदार होते हैं मगर लोग माँ पर ही ज्यादा लिखते हैं आपने पिता को चुना आभार ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। बहुत दिनों से आपका आगमन हुआ नहीं है वहाँ ....
मां की ममता पर तो काफ़ी कसीदे पढ़े जाते रहे हैं पर पिता पर ध्यान नहीं दिया गया जिसने ममता के साथ साथ भरण पोषण की भी जुगाड़ की। कोई भी पिता पुत्र की नाकामी पर उतना ही दुखी होता है जितना की मां। वही प्यार, वही वात्सल्य अपनी औलाद पर दोनों ही उडेलते है। यह भाव इस कविता में अच्छी तरह उभर कर आए हैं, जिसके लिए सुनिल भाई को बधाई॥
yaani sunil ji aap maantae haen ki bachcho ki "nakami " unkae pita ko achchi nahin lagtee ???
yae hi kaarna haen ki pita ke upar kam likhaa jaataa haen aur maa ke upar jyadaa kyuki maa bachchey ko bachcha mantee haen naakamyab aur kaayamabi sae nahin taultii haen
parvarish kaa arth hi galat ho jataa haen agar usko kamyabi sae jodaa jaaye to
बच्चा तो पतंग सा होता है और माँ -बाप पतंग के कन्ने । एक भी कन्ना टूट जाये तो पतंग असंतुलित हो गिरने लग जाती है । दोनों का महत्व एक दूसरे से बढकर ही रहता है ।
सुंदर और मनन करने योग्य रचना....फिर भी ऐसा लगा लिखते समय आपके के दिल के भाव इन शब्दों के प्रभाव से कहीं ज्यादा गहरे रहे होंगे.....अच्छी लगी आपकी ये प्रस्तुति।
भारतीय परिवेश में खरी उतरती क्षणिका ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना,...
जवाब देंहटाएंShayad hee aisa koyi pita mile!
जवाब देंहटाएंकम शब्दो मे गहरी बात कह दी।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई ||
terahsatrah.blogspot.com
बहुत सुंदर, क्या कहने
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता और पिता का प्यार ,दोनों ही बच्चे के भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक हैं !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
सबको होता है।
जवाब देंहटाएंअसल में परोक्ष रूप से औलाद की नाकामियां मां-बाप की नाकामियां होती हैं।
जवाब देंहटाएंसही कहा है सुनील जी ... दोनों का अपना महत्व है जीवन में ... दोनों के बिना जीवन पूर्ण नहीं है ...
जवाब देंहटाएंwah.....bilkul sahi kaha.
जवाब देंहटाएंबाप कहलाने का
जवाब देंहटाएंभला उसे क्या हक़ है,
जिसे अपनी औलाद की,
नाकामियों पर ग़म नहीं होता |
वाह क्या खूब कहा है !!! परवरिश को लेकर माता-पिता दोनों ही जिम्मेदार होते हैं मगर लोग माँ पर ही ज्यादा लिखते हैं आपने पिता को चुना आभार ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। बहुत दिनों से आपका आगमन हुआ नहीं है वहाँ ....
जवाब देंहटाएंपठनीय नहीं अपितु मनन करने योग्य ... हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंkavita samjh hi nahii aayii
जवाब देंहटाएंkyuki upar aur neechae kae bhaav me bahut antar haen
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीया रचना जी आपके प्रश्न का उत्तर पल्लवी जी की टिप्पणी में है| |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिका....
जवाब देंहटाएंसादर...
बहुत khub कहा
जवाब देंहटाएंमां की ममता पर तो काफ़ी कसीदे पढ़े जाते रहे हैं पर पिता पर ध्यान नहीं दिया गया जिसने ममता के साथ साथ भरण पोषण की भी जुगाड़ की। कोई भी पिता पुत्र की नाकामी पर उतना ही दुखी होता है जितना की मां। वही प्यार, वही वात्सल्य अपनी औलाद पर दोनों ही उडेलते है। यह भाव इस कविता में अच्छी तरह उभर कर आए हैं, जिसके लिए सुनिल भाई को बधाई॥
जवाब देंहटाएंसीधे और सरल शब्दों में आपने गहरी और अर्थपूर्ण बात कह दी है ..
जवाब देंहटाएंsahi kaha apne baccho ki parvarish me mata - pita dono ka hi yogdan hota hai..
जवाब देंहटाएंbahut hi acchi rachana hai..
भावमयी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंkya baat hai.......
जवाब देंहटाएंसचमुच माँ यदि माँ है तो पिता भी पिता है... कुछ कम नहीं, सुंदर प्रभाव छोडती रचना !
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है ..सटीक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंyaani sunil ji aap maantae haen ki bachcho ki "nakami " unkae pita ko achchi nahin lagtee ???
जवाब देंहटाएंyae hi kaarna haen ki pita ke upar kam likhaa jaataa haen aur maa ke upar jyadaa kyuki maa bachchey ko bachcha mantee haen naakamyab aur kaayamabi sae nahin taultii haen
parvarish kaa arth hi galat ho jataa haen agar usko kamyabi sae jodaa jaaye to
yahii baat mae kehna chah rahee thee
माँ बाप दोनों सामान जिम्मेदारी होती है,..प्रभावशाली सुंदर रचना,..
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर इंतजार है,....
बहुत सही कहा पिता भी बच्चों की परवरिश का पूरा पूरा
जवाब देंहटाएंफर्ज निबाहता है ...पर प्यार और फर्ज दोनों अलग बातें
हें
बच्चा तो पतंग सा होता है और माँ -बाप पतंग के कन्ने । एक भी कन्ना टूट जाये तो पतंग असंतुलित हो गिरने लग जाती है । दोनों का महत्व एक दूसरे से बढकर ही रहता है ।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन का दूसरा नाम ही पिता है. सुंदर रचना सुनील जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर और मनन करने योग्य रचना....फिर भी ऐसा लगा लिखते समय आपके के दिल के भाव इन शब्दों के प्रभाव से कहीं ज्यादा गहरे रहे होंगे.....अच्छी लगी आपकी ये प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह, 'तीर' दिल को छूते हुए निकला - - -
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना!
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसार संक्षेप में सुंदर रचना !
bahut hi sunder kshanikayen . badhai swikar karen
जवाब देंहटाएंकहीं से ढूंढ़ कर लाओं ,
जवाब देंहटाएंऐसा बाप इस दुनिया में |
जिसे अपनी औलाद की,
नाकामियों पर ग़म नहीं होता |
yahi sach hai bhai .... badhai