क्यों उदास है !
शायद उसको भी ,
घर के बटबारे का आभास है |
जब से दिलों के बीच ,
दूरियों बढ़ने लगीं थीं |
तभी से उसकी जड़ें ,
कमज़ोर पड़ने लगीं थीं|
कल जब आँगन में
बटबारे की दीवार उठाई जाएगी |
वह तुलसी उसकी बुनियाद में,
यूँ ही दफ़न हो जाएगी|
यह सोंच कर
वह आज परेशान है|
मुहब्बत की मिसाल ,
कही जाने वाली तुलसी,
कल क्या मुंह दिखाएगी |
(चित्र गूगल के सौंजन्य से)
उद्वेलित करने वाली कविता है सुनिल भाई॥
जवाब देंहटाएंUf! Kitna dard bhara pada hai!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसुन्दर सशक सार्थक प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंसत्य को लिख दिया है तुलसी व्यथा में
जवाब देंहटाएंhar parivar ki dastan
जवाब देंहटाएंभक्ति की देवी है तुलसी।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम.
जवाब देंहटाएंसच कहा ... घर घर तुलसी आ जायेगी पर आँगन की तुलसी पीली पड़ जायगी ...
जवाब देंहटाएंadunik yug ka yathath aapne tulsi ke madhyam se prastut kiya hai............
जवाब देंहटाएंमन के मेल पर आदमी बाहर घंटों उपदेश दे सकता है,मगर उसकी अपनी हक़ीक़त दीवार ही होती है।
जवाब देंहटाएंमार्मिक और बेहद संवेदनशील..
जवाब देंहटाएंक्या बात है.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति...............
नैतिकता की जिवंत जड़ों को अघात लगने लगा है ,ये सच है /
जवाब देंहटाएंबहुत ही कुशलता से संवेदना को सजीवता देने का प्रयास
निश्चित रूप से सफल है ,........./शुभकामनायें सुनील जी /
सुनील जी बेहद संवेदनशील काव्य बधाई
जवाब देंहटाएंजबरदस्त प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंबधाई आपको ||
गजब का लिखा आपने ......बहुत खूब
जवाब देंहटाएंdiwaron ke bhram kee zarurat bhi kya hai... ab dil hi kahan hai !
जवाब देंहटाएंयथार्थ का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंvery beautiful...
जवाब देंहटाएंa very serious problem expressed through those line.
A stunner piece !!!
बंटवारा एक दुखद यथार्थ है ...सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंतुलसी थी तेरे आँगन की अब बंटवारा कहलाऊंगी ,मैं यूं ही dabaai jaaoongee .behtreen bhaav ko pradipt karti rachnaa ,behtreen prateek tulsi kaa ,jis ghar me tulsi us ghar me chain ,jahaan n tulsi vahaan n rain ..... http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंSaturday, August 27, 2011
अन्ना हजारे ने समय को शीर्षासन करवा दिया है ,समय परास्त हुआ जन मन अन्ना विजयी .
उफ़ तुलसी के माध्यम से एक यथार्थ प्रस्तुत कर दिया।
जवाब देंहटाएंनि:शब्द .........
जवाब देंहटाएंkarun......
जवाब देंहटाएंBeautifully expressed !
जवाब देंहटाएंBahut sundar panktiya rachi hai
जवाब देंहटाएंbadhai
मर्म भरी आखरी पंक्ति ! सुन्दर
जवाब देंहटाएंदुखद यथार्थ है ...सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर करती रचना ...बेहद प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ! मार्मिक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bantvara aur duriyan aaj ka katu satya hai....tulsi ki vyatha ke jariye marmik chitran ...badhai
जवाब देंहटाएंअब तो तुलसी के साथ-साथ कुल देवता भी बांटने लगे हैं..संवेदनशील कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंBehtreen rachana...
जवाब देंहटाएंसुनील भाई, मन से कही गयी रचना, मन में समा सी गयी।
जवाब देंहटाएंबधाई।
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कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
तुलसी अपने वजूद को
जवाब देंहटाएंबनाये रखना चाहती है
...बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति.. ...बधाई
एक भींगा सा अहसास है इस कविता में।
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य की प्रभावी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंjivan ka satya yahi hai dil bat jata to makaan to batna hin hai. tulsi ke maadhyam se bahut sundar abhivyakti, badhai.
जवाब देंहटाएंदरकते सम्बन्धों का दर्द .....
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना
आपने तुलसी के ज़रिये संबंधों के बदलते सच पर बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुत की है ...
जवाब देंहटाएंजैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
जवाब देंहटाएंदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
मार्मिक!
जवाब देंहटाएंआशीष
bahut sunder ........
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna hai....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना......
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंतलसी को माध्यम बनाकर
अतिउत्तम प्रस्तुती।
nishakidisha.blogspot.com.
जवाब देंहटाएंतुलसी एक प्रतीक है हमारी संस्कृति की ,संस्कार की ...जिसका अतिक्रमण आजकल की भौतिकतावादी सोच निरंतर करती जा रही है .........मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद सुनील जी|
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