रसोई में काम करती हुई पत्नी के चेहरे की खीझ साफ दिखाई दे रही थी | कारण था घर में काम करने वाली बाई यशोदा का ना आना | मुझे याद आ रहा था छुट्टी लेने से पहले वह कुछ पैसे मांग रही थी | बाबूजी कुछ पैसे की सख्त ज़रूरत है "| मैंने पत्नी की तरफ इशारा करते हुए कहा "कुछ पैसे इसको दे दो"| उत्तर में पत्नी का क्रोधित स्वर सुनाई दिया "घर में एक भी पैसा नहीं है | उसी समय पत्नी बोली " किसी तरह से एक हज़ार रुपये सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए रखे हैं अगर कुछ नहीं देंगे तो उसका मूड ख़राब हो ख़राब हो जायेगा | कुछ दिनों तक वह काम पर नहीं आई और एक दिन अचानक फिर काम पर आ गयी और उसी तन्मयता से काम करने लगी | पत्नी ने गुस्से से पूछा इतने दिन कहाँ थी ? उसने अपना चेहरा उठाया और बोली कुछ दिनों से मेरा बेटा बीमार था और तीन दिन पहले चल बसा | मैंने चेहरे पर नकली क्रोध लाते हुए कहा इलाज कहाँ कराया उसने कहा सरकारी अस्पताल में, बाहर इलाज में तो हजार पाँच सौ लग जाते | वह मेरे पास कहाँ! मैंने कहा तो मांग लेती वह बोली अगर आप दे देते तो सोनू के जन्मदिन पर गिफ्ट कैसे आती ? और फिर उसका मूड ख़राब हो जाता .........
यह कह कर वह ऊपर वाले मकान के सीड़ियाँ चढ़ गयी और धकेल गयी मुझे गहरी खाई में कुछ सोंचने के
लिए कि हम ऐसे क्यों है ......
(एक पूर्व प्रकाशित एवं पुन : सम्पादित रचना )
(एक पूर्व प्रकाशित एवं पुन : सम्पादित रचना )
सर भारी हो गया
जवाब देंहटाएंसुनील जी ये संवेदनहीन समाज की प्रगति है छद्म प्रगति , पाश्चात्य प्रगति. दिलों में संवेदना भरने के प्रयास कैसे हो सोचने का विषय है .
जवाब देंहटाएंआजकल के समयों की बेहद मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
मानवीय भावनाओं का ह्वास हो रहा है स्वार्थ उत्थान पर है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक पोस्ट....
जवाब देंहटाएंसच में हम ऐसे क्यों हैं :(
जवाब देंहटाएंmarmil......
जवाब देंहटाएंइस तरह की कहानिया पढ़ा कर सभी आते है और दूसरो को कोस कर चले जाते है यदि थोडा खुद पर ध्यान दे तो कभी थोडा कभी ज्यादा हम सभी कुछ ना कुछ ऐसा हम भी करते रहते है |
जवाब देंहटाएंहमें अपने जमीर को मारकर नहीं जीना चाहिए पता नहीं हम ऐसे क्यों हो जाते हैं ......
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव के साथ आपने सच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! मार्मिक प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
हकीकत है!! मगर झूठी कहानियां इतनी सुनाने को मिलाती हैं कि सच्चा मजबूर अगर सच्ची व्यथा भी सुनाये तो भरोसा नहीं होता!!
जवाब देंहटाएंउफ़ …………एक ह्रदयविदारक मगर कटु सत्य झकझोरने को मजबूर करता है।
जवाब देंहटाएंआंखे खोल देने वाली कहानी है। ईश्वर से यही प्रार्थना कि ये कहानी ही रहे, कभी ऐसी हकीकत से सामना ना करना पडे। वरना फिर इस सोनू का कभी जन्मदिन नहीं मनेगा।
जवाब देंहटाएंdil ko jhakhorne veli post...
जवाब देंहटाएंसोचने क को मजबूर करनेवाली रचना... आखिर हम ऐसे क्यों हैं...
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती पोस्ट।
जवाब देंहटाएंmarmik.....sachchayee.
जवाब देंहटाएंmarmik ..ye hi sacchai hai
जवाब देंहटाएंtouching story
जवाब देंहटाएंits lack of proper communication
सुनील भाई इसे रचना न कहें ये तो बहुत ही शानदार लघु कथा है
जवाब देंहटाएंआपसे एक दरख्वास्त है एक बार कभी कुछ अपनी हैदराबादी स्टाइल में कुछ प्रस्तुत करें............... आय एम श्योर बाकी मित्र भी ठहाके मार कर हँसेंगे :)
sach mein hum aisa kaise kar saktein hain...........Apne siwa hum kisi aur ke baare mein kun nahi soch paate...
जवाब देंहटाएंसच में हम ऐसे ही है ,अपना स्वार्थ पहले..सोचने को मजबूर करती रचना बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंसंवेदनाहीन होते जा रहे समाज से यह पूछा जाना आवश्यक है कि ‘हम ऐसे क्यों होते जा रहे हैं?‘
जवाब देंहटाएंमार्मिक लघुकथा।
आपकी कथाएँ स्तब्ध कर देती है.
जवाब देंहटाएंआज के समाज का सच. बहुत मार्मिक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसच्चाई को बड़े ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
जवाब देंहटाएंफ्रेंडशिप डे ' की आपको ढेर सारी शुभकामनाएँ ....
बेहद सम्वेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंजो वकई सोचने पर मजबूर करती है , हम ऐसे क्यों है ????????
बेहद मर्मस्पर्शी ........नि:शब्द कर गयी .....
जवाब देंहटाएंओह!
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