मंगलवार, नवंबर 09, 2010

यूँही नही हम ऐसे



माना कि ज़िंदगी की दौड़ में 
हम सबसे  पीछे रह गए |
बदल लेते अगर, रास्ता अपना 
तो हम भी बहुत दूर निकल जाते |

ऐ दोस्त  रौशनी की ज़रूरत 
अगर होती नहीं हमको |
तो ऐ  आफ़ताब कुछ लोग तो ,
तुझको भी ज़िन्दा निगल जाते | 

22 टिप्‍पणियां:

  1. कम शब्दों में काम की बात!
    यही तो है आपकी विशेषता!

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  2. तो ऐ आफ़ताब कुछ लोग तो ,
    तुझको भी ज़िन्दा निगल जाते |
    Behad sashakt rachana hai!

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  3. गज़ब कर दिया चंद शब्दो मे ही…………बेहतरीन्।

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  4. कम शब्दों में गहरी बात .बहुत सुन्दर.

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  5. बिना लाग लपेट कम शब्दों में सीधी और सच्ची बात

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  6. सरल सहज शब्दो मे गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  7. गागर मे सागर भर दिया। बहुत सुन्दर भाव। शुभकामनायें।

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  8. सुनील जी... बहुत ही उम्दा लिखा है आपने .
    आपको बधाई ..

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  9. सीधी बात!
    उम्दा!
    आशीष
    ---
    पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

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  10. बहुत कम शब्दों में जीवन की सचाई को अभिव्यक्त कर दिया आपने ..मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद ..ऐसे ही उत्साहवर्धन करते रहें

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  11. माना कि ज़िंदगी की दौड़ में
    हम सबसे पीछे रह गए |
    बदल लेते अगर, रास्ता अपना
    तो हम भी बहुत दूर निकल जाते ....

    -------

    यही तो अफ़सोस है, लोग किसी की सादगी को उसके पिछड़ेपन का नाम दे देते हैं, जबकि दरअसल वो शख्स बेहद विनम्र और शान्ति प्रिय होता है। चुपचाप देखता है लोगों के बीच आगे बढ़ने की जद्दोजहद ।

    .

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  12. सही है भैया । वो तो रौशनी की जरुरत है इसलिये बचा हुआ है बेचारा

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  13. बहुत ही सुंदर.... चंद पंक्तियों में इतनी अर्थपूर्ण बात समेटी..... खूब

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  14. अच्छा किया आपने जो रास्ता बदला नही
    आप अपने बनाये रास्तों पर ही चले
    दुनिया जरूर एक दिन आपके कदमो के निशान पर चलेगी

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  15. चंद पंक्तियों में अर्थपूर्ण रचना..... आभार.

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  16. सही नब्ज़ पकड़ी है आपने इस मतलबी समाज की... वाह..

    ब्लॉगजगत में नया आया हूँ, आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है|
    ashishgosain.blogspot.com

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