शनिवार, सितंबर 04, 2010

ज़िंदगी और रोटी




 दूध के दाँत जल्दी टूटने का,
 एक कारण सूखी रोटियां भी थी |
बचपन बीतने का अहसास तब हुआ
जब मैं रोटी कि तलाश को निकला |
जवानी एक रोटी से दूसरी रोटी के,
सफ़र को तय करने में  गुज़र गयी ,
और आज बुढ़ापा जली बासी रोटी कि तरह,
कचरे के डिब्बे का इंतजार कर रहा है |



(पुनः सम्पादित रचना)




19 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब , कम शब्दों में आपने इतना कुछ कह डाला ,,जीतनी तारीफ़ करो , कम ही होगी ,,,लाजवाब
    जितना गाओ घिंसता जाये जीवन का धुंधला संगीत।


    दोमट पर पहली छिड़कन से !

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  2. बहुत सुन्दर रचना, सचमुच हमारी आबादी का १ बहुत बड़ा हिस्सा अपनी जिन्दगी का १ बड़ा हिस्सा केवल रोटी के इन्तज़ाम मे ही बिता देता है, अन्त मे सच यह मिलता है कि "जब दात तब चना नही जब चना तब दात नही"

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  3. ज़िन्दगी की सच्चाई को बहुत ही सुन्दर रूप से आपने शब्दों में पिरोया है! उम्दा प्रस्तुती!

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  4. अबूझ जिंदिगी की बेमिसाल परिभाषा
    हार्दिक बधाई इस अथक प्रयास और अनुभूति की
    चन्द्र मोहन गुप्त

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  5. आदरणीय सुनील कुमार जी
    नमस्कार !

    जवानी
    एक रोटी से दूसरी रोटी के सफ़र को
    तय करने में गुज़र गयी

    बहुत संवेदनशील रचना के लिए आभार
    बधाई की परिधि से बहुत आगे … बहुत उच्च कोटि की रचना …
    शब्द नहीं भाव महत्वपूर्ण हैं …
    साधु …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  6. जवानी एक रोटी से दूसरी रोटी के,
    सफ़र को तय करने में गुज़र गयी ,
    और आज बुढ़ापा जली बासी रोटी कि तरह,
    कचरे के डिब्बे का इंतजार कर रहा है |

    बहुत गहरे अहसास !

    sorry, bhoolbas yah tippani aapkee doosree post par kardee thee

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  7. जवानी एक रोटी से दूसरी रोटी के,
    सफ़र को तय करने में गुज़र गयी ,
    और आज बुढ़ापा जली बासी रोटी कि तरह,
    कचरे के डिब्बे का इंतजार कर रहा है

    सुंदर और शुद्ध भाव!

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  8. दूध के दाँत जल्दी टूटने का,
    एक कारण सूखी रोटियां भी थी |
    बहुत ही गंभीर और मार्मिक रचना के लिए बधाई

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  9. jawani ki nihaayat hi sachchi aur saral paribhasha....
    very nice sunil ji...superb use of emotions in lines..keep going

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  10. jeevan ka path bahut ghumav liye chalta hai. aapne iske har pahlu ko samjha hai

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