किसी गाँव में एक व्यक्ति अपने पत्नी और अपने इकलौते बेटे के साथ रहा करता था ।
अचानक एक दुर्घटना में उसकी पत्नी की मृत्यू हो गयी । कुछ दिन गुजरने के पश्चात् उसने
सोंचा घर सँभालने के लिए एक स्त्री की आवश्यकता होती हैं क्यों ना अपने बेटे की शादी
करदी जाये ।अत: उसने अच्छा सा रिश्ता देख कर उसका विवाह कर दिया । इस बीच उसके घर एक बेटे का जन्म भी हो गया ।अब वह दिन भर अपने पोते के साथ खेलता रहता और
घर बाहर का काम भी कर दिया करता इस तरह उसके दिन अच्छे गुजरने लगे ।
एक दिन अचानक उसके बेटे ने कहा देखिये पिता जी आप तो जानते ही हैं कि घर का
खर्चा कितना बढ़ गया हैं और आप के लगातार बीमार रहने से इलाज भी कराना पड़ता हैं ।
आप दिन भर खांसते रहते हैं अगर यह छुआछूत का रोग मेरे बेटे को लग गया तो हम एक
बड़ी मुश्किल में पड़ जायेंगे क्यों ना आप घर छोड़ कर किसी बृद्ध आश्रम में चले जाएँ तो
यह हम सब के लिए अच्छा होगा । पिता ने उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और जाते समय बोला मुझे ओढ़ने के कुछ दे दो बाहर बहुत ठण्ड हैं ।बेटे ने पुराना कम्बल निकाल कर
दे दिया। उसने उस कम्बल के दो हिस्से करे और अपने बेटे से बोला इसे संभाल कर रखना
यह आधा कम्बल कुछ समय बाद तुम्हारे काम आएगा .......
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंलाज़वाब अंत।..बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंमैंने कहानी की अंत ऐसे सुना है की जब वो अपने पिता को कम्बल देता है तो उसका बेटा दौड़ कर आता है और कम्बल ले कर चला जाता है वो उसके दो टुकडे करता है और कहता है पिता जी आधा कम्बल आप के लिए है | समय के साथ कुछ परिवर्तन ऐसे होते है जिन्हें हम पलट कर बदल नहीं सकते है ये किस्सा भी वैसा ही है तभी आज कल हर पुत्र अपने बुढ़ापे का इंतजाम खुद करने लगा है |
जवाब देंहटाएंAah! Badee bodh prad katha!
जवाब देंहटाएंdukhad......
जवाब देंहटाएंzindgi ki sachchai. aabhar.
जवाब देंहटाएंजैसी करनी, वैसी भरनी..
जवाब देंहटाएंvashtiwikta...
जवाब देंहटाएंvashtvikta
जवाब देंहटाएंपिता ऐसा ही करते किन्तु ऐसी स्थिति से निबटने के लिए ही अब उत्तर प्रदेश में और अन्य राज्यों में २००७ के एक कानून को लागू किया गया है जिसमे ऐसे अपने माँ-बाप को घर से निकलने पर सजा व् जुर्माने का प्रावधान है.
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय भावपूर्ण प्रस्तुति तुम मुझको क्या दे पाओगे ?
आधा कम्बल .....बोयेंगे सो पायेंगे ,हर पीढ़ी के लोग ....बढ़िया विचार कथा .बधाई ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति है कृपया यहाँ भी पधारे -
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
अस्थि-सुषिर -ता (अस्थि -क्षय ,अस्थि भंगुरता )यानी अस्थियों की दुर्बलता और भंगुरता का एक रोग है ओस्टियोपोसोसिस
http://veerubhai1947.blogspot.com/
सच कहा है .. क्योंकि उसका बेटा तो उसे आधा कम्बल भी नहीं देने वाला ...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कह जाती है आपकी लघु कथा ... जैसा बोये वैसा काटे ...
आज की सच्चाई यही है,,,,,
जवाब देंहटाएंमन व्याकुल करती लघुकथा,,,
MY RECENT POST ...: जख्म,,,
ऐसा लग रहा है जैसे आपने पूरे समाज के सामने आइना रख दिया हो।
जवाब देंहटाएंआइये अपने अपने चेहरे देखिए..
बहुत सुंदर लघुकथा
marmik prastuti ......sach ka aaina hai yah ,aaj ka kawa sach ,
जवाब देंहटाएंsundar laghukatha
यथार्थ का आईना दिखाती पोस्ट जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान...
जवाब देंहटाएंसुन्दर हृदयस्पर्शी कहानी...
जवाब देंहटाएंमिट्टी के कसेरों में बूढ़े माँ-बाप को चाय पिलाने वाली एक कुछ ऐसी ही कहानी बचपन में पढ़ी थी....
सोचने पर विवश करती हैं ऐसी कथाएं....
सादर
अनु
दुखद किन्तु सत्य..
जवाब देंहटाएंदर्दभरी दास्ताँ .. आज की स्तिथि वृद्धावस्था के दर्द .. बहुत सुन्दर लिखा है.
जवाब देंहटाएंkya kahun...
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमार्मिक ...जीवन की कथा
जवाब देंहटाएंओह!
जवाब देंहटाएंमन दुखी है ...
लघु कथाओं में गहरे मर्म को उकेरना आपकी विशिष्टता है,आदरणीय बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंa bitter truth...very touching..
जवाब देंहटाएंमाता-पिता तो आखिर माता-पिता ही होते हैं :)
जवाब देंहटाएंअगर उनके स्थान पर खुद को रख लिया जाए तो ये परिस्थिति उत्पन्न ही न हो .......
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