शनिवार, मार्च 10, 2012

पेट की तपिश

ठंडे चूल्हे ने ,
मुस्कराते हुए
ख़ाली पतीली से पूछा ?
आज कब आओगी ।
और  क्या पकाओगी ?
और सूखी लकड़ियों ने
ख़ुशी मनाई ।
आज वह जलने से ,
बच गयीं  ।
पतीली ने मेरी तरफ,
शरमाते हुए देखा ।
और आ  लगी
मेरे जलते हुए पेट से ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. एक गरीब की जिंदगी का कटु सत्य ....दर्द भरा

    जवाब देंहटाएं
  2. चंद लाइनों में गरीबी का कटु सत्य ,जो आधी आबादी की कहानी है.
    बहुत खूब लिखा है आपने. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. अद्भुत बिम्ब प्रयोग... सुन्दर रचना...
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  4. गरीब के जीवन के यथार्थ को एक अलग ही अंदाज़ में दर्शाती रचना...

    जवाब देंहटाएं
  5. एक आग दूसरे को बुझाती हुयी...सुन्दर साम्य..

    जवाब देंहटाएं
  6. अलग अंदाज में बढ़िया सृजन किया है आपने,...

    सुनील जी,..बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आये
    जब कि मै आपका नियमित पाठक हूँ,....आइये,...

    RESENT POST...काव्यान्जलि ...: बसंती रंग छा गया,...

    जवाब देंहटाएं
  7. ओह !!
    पेट की जलन के साथ अति मार्मिक रचना ,आँख भर आई

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह!!!
    अदभुद अभिव्यक्ति...

    बहुत खूब.

    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  9. पुरानी समस्या....नया अंदाज़...
    गहरी सोच..

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 27 अगस्त 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं