मंगलवार, अक्तूबर 18, 2011

एक पिता की चिंता .........




कूद कर मेरी बेटी का 
गोद में बैठ जाना 
गलें  में बाहें डाल कर ,
कुछ माँगना
और हँसकर,मेरा उसकी ,
 मांग को पूरी करना |
मगर आज, माँगा है उसने ,
सलवार और कुर्ता,
फ्राक के बदले |
क्योंकि वह हो गयी है बड़ी|
अचानक मेरा ,
गहरी सोंच में डूब जाना   
डर कर सहम जाना |
उसे इस वहशी समाज ,
 से कैसे है बचाना ?


43 टिप्‍पणियां:

  1. मगर आज, माँगा है उसने ,
    सलवार और कुर्ता,
    फ्राक के बदले |

    पिता की संवेदना को बहुत गहरे भावों के साथ संप्रेषित किया है आपने .......!

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  2. बहुत मार्मिक रचना...आज के सभ्य समाज को मुंह चिढाती हुई...बधाई स्वीकारें

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  3. गहरी सोंच में डूब जाना
    डर कर सहम जाना |
    ...बहुत सच कहा है संवेदनशील
    बहुत मार्मिक रचना

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  4. bachcha hona ham sabke liye aasan hai lekin maa baap banna utna hi muskil...
    jai hind jai bharat

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  5. एक पिता की भावनाओं की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..

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  6. एक पिता की चिंता की सही तस्वीर ....
    प्रभावी रचना ....
    शुभकामनायें !

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  7. एक पिता की भावनाओं की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..सच्ची भावनाओं को प्रस्तुत करती एक सार्थक पोस्ट शुभकामनयें

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  8. एक पिता की अपनी बेटी के लिये स्वाभाविक चिन्ता।

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  9. पिता का डर बेटियों को और डरा देता है अच्छा हो पिता कमजोर बनाने के बजाये वहसीयो से बेटियों को लड़ना सिखाये न खुद डरे न बेटियों को डराये |

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  10. बेहद भावुक कर देने वाली पोस्‍ट।

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  11. पिता के मन की चिंता लिए पंक्तियाँ......

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  12. क्योंकि वह हो गयी है बड़ी|बिल्कुल सही चिंता दिल को छू लिया।

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  13. pita ki chinta vajib hai beti ko bheriyoun se kaise bachye.........

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  14. मेरे पिता की गजल का एक शेर है .....

    बेटियां जब से बड़ी होने लगी हैं मेरी
    मुझको इस दौर के गाने नहीं अच्छे लगते ....

    सच में ये चिंता जायज है

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  15. Jis prakar nari ke prati samaj mein dohra mapdand hai ek pita ki chinta swbhawik hai. Lekin ladkiyon lagatar kam hoti sankhya samaj ko apne soch mein parivartan lane ke liye vivas karegi. Log ladkiyon ke prati udar hone ka praman patra dete phirenge. Bahut achha post.

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  16. बेटी के बड़े होते ही पिता के मन में ऐसे खयाल आ ही जाते हैं। साथ ही यह भी कहना होगा कि आज की पीढ़ी अब पहले से कहीं अधिक सतर्क और होशियार भी है।

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  17. आपकी चिंता में हमारी चिंता भी शामिल है ,क्योंकि यही आज की सच्चाई है एक काली सच्चाई और समाज का भयावह रूप

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  18. पिता का डर स्वाभाविक है !
    किन्तु इस डर की वजह से उन्हें कमजोर तो
    बनाया नहीं जा सकता ना ?

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  19. मगर आज, माँगा है उसने ,
    सलवार और कुर्ता,
    फ्राक के बदले |
    क्योंकि वह हो गयी है बड़ी|

    क्या माँगा है यह स्पष्ट नहीं है ..फिर भी हर पिता ऐसी ही चिन्ता करता है ...

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  20. समाज किस से बनता हैं ? बेटे और बेटी से . सो बेटे और बेटी को सब अगर समान समझ दे गए तो सुरक्षा खुद आयेगी
    लोग बेटो को कभी ये नहीं समझाते किसी भी वर्ग के लोग की लड़की को मत छड़ो पर लड़कियों को सब पर्दे में रखना चाहते हैं
    और पिता बनते ही हर पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी के लिये असुरक्षित मानता हैं बेहतर होता पुरुष एक दूसरे को इस और शिक्षित करे ताकि हर पुरुष की बेटी दूसरे पुरुष की भी बेटी ही हो
    क्या ये इतना संभव कार्य हैं एक पुरुष से बेहतर दूसरे पुरुष को कौन समझ और समझा सकता हैं
    समय हैं बेटियों को नहीं बेटो को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का

    on the poem
    i would say its a good piece of work

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  21. मैने तो अपनी बेटी को इतना मज्बूत बना दिया है कि वह किसी भी बेटे से ज्यादा अपनी और मेरी देखभाल कर सकती है

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  22. हाँ ,बेटी को उस लायक बना कर ही चिंता को कम किया जा सकता है पर पिता तो पिता ही है न..

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  23. स्वाभाविक सी चिंता अभिव्यक्त हुई है!

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  24. चिंता तो चिता समान होती है.. बजाये चिंता करने के यदि बिटिया को वास्तविकता से परिचित कराया जाए और स्थिति से लदना सिखाया जाए तो चिंता का कोई अस्तित्वा नहीं रह जाता!! मैं स्वयं बेटी का बाप हूँ, अतः यह कह सकता हूँ!!

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  25. बहुत सुन्द कविता है. पिता की मनोदशा को स्पष्ट करती, बेटियों के पिताओं की ओर से.....

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  26. सुनील जी,मै आपके ब्लॉग में पहली बार आया,कुछ रचनाओं को
    पढा,अच्छी लगी,बेटी बड़ी होने पर पिता की चिंता स्वाभाविक है,अच्छी पोस्ट,बधाई....मेरी पुरानी पोस्ट \वजूद\देखे बेटियों के लिए लिखा है....

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  27. कोई चिंता नहीं ,पिता को बेटी के भविष्य के लिए सदैव सकारात्मक सोच रखनी चाहिए ...

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  28. बेटियों पर लिखी रचना सच के एकदम समीप है. यह अभिव्यक्ति पसंद आयी,....! अच्छी रचना का आभार !

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  29. aadarniy sunil ji
    aapne ek pita ki antardwand ko bahut hi santulit tareeke se shabd diye hain.
    bahut hi sach likha hai aapne betiyan achanak se badi ho jaati hain aur hame lagta hai ki vo abhi to bachchi hi hain.
    ye samaaj bhi to ham insaano ne hi banaya haiaur usko vyavasthit karna bhi hamaari hi jimmedaari hai.
    aapki rachnabahut bahut hi badhiyan lagi
    badhai
    poonam

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  30. दिवाली मुबारक !मंगल कारी होवे ये पर्व आपके परिवार के लिए आपके लिए ,सभी सेहत मंद रहें .

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  31. पिता की भावनाओं की बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .......

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  32. गहरी सोंच में डूब जाना
    डर कर सहम जाना |
    उसे इस वहशी समाज ,
    से कैसे है बचाना ?

    आज हर पिता को चिंता है... आभार

    मरे ब्लाग पर भी आयें..

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  33. बहुत ही समायिक विषय चुना है और बहुत ही सुन्दर तरीके से भव व्यक्त किए हैं आपने...रचना काबिले तारीफ है
    मैंने भी अपने ब्लॉग में इस विषय पर एक रचना "कांच का घर" लिखा है समय निकाल कर अवश्य पढ़ें

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