और ठूंठ पर कटाक्ष ,
क्या मिला तुमको ?
सह कर आँधियों के थपेड़े ,
और मौसम का कहर |
बढ़ना सूखना और टूट कर गिरना ,
यही था तुम्हारा जीवन चक्र
फिर लकड़हारों की टोलियों का
तुम पर टूट पड़ना |
पल भर में ,
बना देना तुम्हें एक ठूँठ |
और मैं हंसती खेलती हूँ
हवाओं के साथ आज भी |
ठूँठ की मधुर मुस्कान,
और दिया झाड़ी को उत्तर
और दिया झाड़ी को उत्तर
मैंने दिया , निमंत्रण पास आने का
पथिकों को छाया
और परिंदों को आशियाँ |
और तुमने दिया भय,
काँटों के चुभने का
और सबको तुमसे दूर रहने का |
सही व्यंग्य, सिक्के के दोनों पहलुओं का सही प्रतिधित्व गुजर गया एक साल
जवाब देंहटाएंहोता यही है झाड़ियां पनप रही है और पेड़ों क जड़ से काटा जा रहा है
जवाब देंहटाएंआज के दौर पर सटीक है यह रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सटीक चिन्तन को दर्शाती रचना।
जवाब देंहटाएंयही मानवीय भावनाओं में भी व्यक्त होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है सुनील जी सचमुच
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो आपको
सार्थक और सटीक चिन्तन...
जवाब देंहटाएंजो बचा लेता है खुद को दूसरों के काम कहाँ आता है... खुद को लुटा कर ही यहाँ अफसाने गढे जाते हैं...बहुत सुंदर कविता !
जवाब देंहटाएंठूँठ की मधुर मुस्कान,
जवाब देंहटाएंऔर दिया झाड़ी को उत्तर
मैंने दिया , निमंत्रण पास आने का
पथिकों को छाया
और परिंदों को आशियाँ |
और तुमने दिया भय,
काँटों के चुभने का
और सबको तुमसे दूर रहने का |...bahut hi badhiyaa
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंशुभ-कामनाएं ||
काँटों का ही बोलवाला है..सुन्दर संवाद
जवाब देंहटाएंबढिया संदेश सुनिल भाई।
जवाब देंहटाएंहमारे जीवन में बहुत से ऐसे प्रसंग मिल सकते हैं ,,
जवाब देंहटाएंyah bhi khub rahi ?????
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिवयक्ति....
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiyan ....
जवाब देंहटाएंसटीक चिन्तन, सार्थक अभिव्यक्क्ति. शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंमैंने दिया , निमंत्रण पास आने का
जवाब देंहटाएंपथिकों को छाया
और परिंदों को आशियाँ ।
और तुमने दिया भय,
काँटों के चुभने का
और सबको तुमसे दूर रहने का ।
सत्कर्म करने वाले ही ज्यादा कष्ट सहते हैं।
बढि़या कविता।
आद सुनील जी,
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाएं नार्मल फॉण्ट में नहीं दिखती इसलिए पढ़ नहीं पाता...
समझ नहीं आता यह मेरे सिस्टम की प्राब्लम है या कुछ और तकनिकी समस्या...
सादर...
सार्थक और सटीक चिन्तन... . शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंहमारे आस-पास से बिम्ब उठाकर गहरी सीख देने वाली यह रचना.. सुनील जी आभार आपका!!
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...
जवाब देंहटाएंAb bhi mauka hai... pedon ko thunth hone se bachayen... kyonki unse chhaya to hame hi milni hai... Behtareen rachna
जवाब देंहटाएंbahut hi sahi or sundar kavita hai...
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जवाब देंहटाएंठूंठ और झाड़ी जैसे प्रतीकों को बिंब बना कर एक दर्शन की प्रस्तुति की है आपने अपनी कविता में …
सुनील जी
सादा लहज़े में बड़ी बात कहने के आपके अंदाज़ को मैं हमेशा से पसंद करता आया हूं … आभार… और बधाई इस रचना के लिए !
त्यौंहारों के इस सीजन सहित
आपको सपरिवार
दीपावली की अग्रिम बधाइयां !
शुभकामनाएं !
मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
झाड़ी और ठूंठ का संवाद बहुत ही प्रभावशाली ......सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रतीकों के माध्यम से सुन्दर बात उजागर हुई है!
जवाब देंहटाएंऔर दिया झाड़ी को उत्तर
जवाब देंहटाएंमैंने दिया , निमंत्रण पास आने का
पथिकों को छाया
और परिंदों को आशियाँ |
और तुमने दिया भय,
काँटों के चुभने का
और सबको तुमसे दूर रहने का |
sunder samvad
badhai
rachana
ठूंठ और झाडी के माध्यम से मन की भाव्नाप्न को वुँक्त किया है ...
जवाब देंहटाएंमैंने दिया , निमंत्रण पास आने का
जवाब देंहटाएंपथिकों को छाया
और परिंदों को आशियाँ |
और तुमने दिया भय,
काँटों के चुभने का.
बहुत ही प्रभावशाली.
A very meaningful poem.Beautifully expressed.Thanks.
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