सामने के प्लाट में खुदाई का काम तेजी से चल रहा था | सुनने
में आया कि एक बहुमंजिला ईमारत बनने वाली है | मजदूरों के
साथ साथ मशीनों का शोर भी मुझे परेशान कर रहा था | मजदूर
एक दुसरे से मजाक करते हुए अपने काम में लगे रहते और
बीच बीच में ठेकेदार कि गालियाँ भी खाते रहते थे | उन्ही में था एक
राम खिलावन बीस बाईस साल का हंसमुख नौजवान , उसके साथी
उसे छेड़ते हुए पूछते थे "व्याह तेरा होगा की नाहीं या कुंबारा ही मरिहो?
वह बहुत रौब से कहता था" देखना इ जेठ में शादी ओउर अगले जेठ में
लड़का" सब इस पर हँसते और अपने कम पर लग जाते |
कुछ दिनों के बाद वह अपने गाँव गया और शादी करके अपनी बीबी
के साथ एक टीन का बक्सा और साईकिल भी लेके आया |
रोज सुबह शाम को टीन का बक्सा बजा कर गाना गाता" हमरे अंगना खेले मोरा लाल " कुछ दी तक सब सामान्य रहा |
फिर एक दिन अचानक ठेकेदार की नजर उसकी बीबी पर पड़ी
फिर वही हुआ जिसका डर था |
पुलिस आयी पंचायत बैठी और थमा दिए गए कुछ रुपये उसके हाँथों में
अगले दिन जब टीन का बक्सा नहीं बजा तो लोग अन्दर गए जो देखा
सब स्तब्ध रह गए क्योंकि दो लाशें छतपर लटक रही थी और उनके हांथों में वह रुपये थे और ऑंखें खुली थी जैसे वह पूछ रही हों क्या यही
तुम्हारा न्याय है या चुप रहने का सौदा ? अगर यह सौदा था |
तो हमें मंजूर है | क्योंकि अब हम चुप हो गये हमेशा के लिए ....
उफ़ रौंगटे खडे कर देने वाला भयावह सच है।
जवाब देंहटाएंविभत्स!
जवाब देंहटाएंबेहद दर्दनाक...
जवाब देंहटाएंकिन्तु आज की हकीकत.
उफ़ ...अंतरात्मा काँप गई....
जवाब देंहटाएंसब से बडा रुपया :(
जवाब देंहटाएंandar kuch ghumadne laga ...
जवाब देंहटाएंअवाक करने वाली रचना!
जवाब देंहटाएंबेहद दर्दनाक....
जवाब देंहटाएंऔर हम कहते हैं कि हम तरक्की कर गये हैं!! शर्मनाक घटना!! निंदनीय!!
जवाब देंहटाएंहा गरीबो के साथ ऐसे ही न्याय होता है किन्तु इस तरह चुप होने वाले कम ही होते है कई बार न्याय के नाम पर सौदे में वो भी शामिल होते है क्योकि जानते है की न्याय तो उन्हें कभी नहीं मिलेगा कम से कम कुछ पैसे तो मिले ताकि अन्याय को भुलाने का कुछ बहाना तो मिल सके |
जवाब देंहटाएंजो सहन नहीं कर पाते वो मर जाते हैं और अनेकों ऐसे हैं जो परिस्थिति से समझौता कर रोज जहर पीते हैं । ये संसार शक्तिशाली और शक्तिविहीन वर्गों में बंटा है , शोषण और अत्याचार पता नहीं कब खत्म होगा , ये वीभत्स और दर्दनाक सत्य है ।
जवाब देंहटाएंये एक ऐसी रचना है जो हम आए दिन अखबार में पढ़ते हैं
जवाब देंहटाएंऐसी बातें किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को स्तब्ध कर देती हैं
कब होगा ऐसी शर्मनाक घटनाओं का अंत ?
ऐसी घटनाएं हमारे आसपास घटती ही रहती हैं। कुछ अखबारों की सुर्खियां बनती हैं, कुछ दफन कर दी जाती हैं।
जवाब देंहटाएंशर्मनाक। 21 वीं सदी के भारत की घिनौनी तस्वीर।
ओह हृद्य को बीन्ध देने वाली घटना। बस निशब्द हूँ। आभार।
जवाब देंहटाएंमार्मिक, दुखद सच।
जवाब देंहटाएंअत्यंत मार्मिक रचना.....
जवाब देंहटाएंखून खौलाती बिचारोतेजक लघु कथा !
जवाब देंहटाएंखुद मर जाने से अच्छा होता साथी मजदूरों को इक्ट्ठा कर विरोध प्रकट करना,लेकिन गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है,यह भीतर से कमजोर कर देती है, मार्मिक रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भयानक सच्चाई से रूबरू कराया आपने.
जवाब देंहटाएंमार्मिक घटना बयान की आपने। गांव वालों को शहर के जंगल के वहशियों का पता चलने में काफी देर लगती है।
जवाब देंहटाएंउफ़ ...उफ़ ...उफ़ ...उफ़ ...
जवाब देंहटाएंबहुत दुखद अंत पर वास्तविकता के बहुत करीब शायद इसीलिए गरीबी इतनी भयावह नज़र आती है क्युकी इसमें इन्सान अपने बचाव का कोई साधन तक जुटा नहीं पाता और आखिरी रास्ता सिर्फ यही दुखद अंत होता है |
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना |
ब्लॉग को वर्ष पूर्ण होने पर बधाई.....शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंसौदा तो तब पूरा होता जब मरने से पहले ठीकेदार को मार कर मरते। घाटे का सौदा।
जवाब देंहटाएं..विभत्स!
खौफनाक पर सच्चाई बयां करती हुई पोस्ट. वास्तविकता के बहुत करीब.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की ---http://archanachaoji.blogspot.com/2011/02/blog-post_19.html-----इस पोस्ट पर की गई आपकी टिप्पणी को मद्देनजर रखकर दी थी मैने बधाई....
जवाब देंहटाएंमहात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..
जवाब देंहटाएंsach mein vastvikta ke kareeb , rongte khadi karne wali rachna , ek serial chal raha hai , ''rishton se badi pratha '' usmein bhi kuch aisa hi tha
जवाब देंहटाएंभगवान् ना करे की ये सच घटना हो...
जवाब देंहटाएंaksar aisa hota hai,bolne wale ki jubaan bnd kr di jati hai............
जवाब देंहटाएंमार्मिक.
जवाब देंहटाएंवाक़ई बहुत बुरा समय आ गया है.
शर्मनाक घटना!
जवाब देंहटाएंdil ko chhu gai laghukatha.....
जवाब देंहटाएंमारमिक कथा। पर न्याय पाने के लिए एक जुटता का अभाव। साथी मज़दूरों की निरीहता।
जवाब देंहटाएंhridaye ko sprsh krne wali rachna
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