देखने में लगभग सात आठसाल का एक बच्चा फटे पुराने कपड़े
या उन्हें चीथड़ा कहें आपने शरीर पर लपेटे हुए एक किराना शाप
के सामने बैठा हुआ था | जैसे वह दुकान की सीड़ियाँ चढ़ने की
कोशिश करता तभी दुकानदार दुत्कार कर भगा देता | वह दो तीन
बार प्रयास कर चुका था हर बार दुकानदार की गलियों में अभद्रता
बढती जाती थी | वह चिल्लाकर कह रहा था कहाँ से चले आते है
सवेरे सवेरे भीख मांगने वाले , दुकान खुली नहीं की सिर पर सवार हो
गए | इस बार उसने अपनी मुठ्ठी में दबे दस के नोट को आगे कर
कहा " टॉफी लेनी है " दुकानदार ने आपने स्वर में मधुरता लाते हुए कहा
अन्दर आकर बताओ कौन सी टॉफी ?
हमें स्वार्थ के सिवा और नजर भी क्या आता है ...बहुत विचारणीय ...आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंhamse pehchan karne mein hamesha hi bhool hoti hai ''''yahi to hamari bhool hai;;;;;;;;;;;;;
जवाब देंहटाएंधनप्रधान देश।
जवाब देंहटाएंभौतिकता में मानवीय संवेदना लुप्त हो रही है।
जवाब देंहटाएंआज यही पासपोर्ट बन गया है, इज़्ज़त पाने का!!
जवाब देंहटाएंविचारणीय
जवाब देंहटाएंसिर्फ नोट की भाषा आती है यहाँ .... :(
जवाब देंहटाएंmann akula jata hai ... asliyat ki sahi tasweer
जवाब देंहटाएंदोहरे व्यक्तित्व हर जगह मिल जायेंगे। आभार।
जवाब देंहटाएंयही है आज का युग जहाँ स्वार्थ ही सब कुछ है.
जवाब देंहटाएंkitni kadvi sachchayee dikha di aapne.
जवाब देंहटाएंदोगले व्यक्तित्व में जीता है हमारा समाज ...
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग है ....
बाहरी दिखावा ही बन गया है आज के व्यक्ति की पहचान..सटीक व्यंग
जवाब देंहटाएंदुनिया में सिर्फ स्वार्थ रह गया है .. यहाँ मानवता की उम्मीद ...... बेकार है
जवाब देंहटाएंसच्चा चित्रण
हमें चिथडों में लिपटा भारत का नागरिक नज़र नहीं आता. हाँ मुट्ठी में रखे नोट को हम पहचानते हैं.
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा रुपैया.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुनील जी
जवाब देंहटाएंयांत्रिक गड़बड़ी के कारण जो आपको असुविधा हुई उसके लिए क्षमाप्रार्थी हुॅ। मैने उस रचना को दोबारा पोस्ट किया है। आपके आगमन का इंतजार है। अब आपकी रचना पर आता हुॅ।
मेरे ख्याल से अब दुनिया में भगवान की पुजा को छोड़ कर पैसे की ही पुजा करनी चाहिए। क्योंकि आज के समय मे किसी से भी पुछो कि आज सबसे ज्यादा मुल्यवान वस्तु कौन सी है तो शायद ही किसी अलग चीज का नाम बताए।
कडवी सच्चाई। आज के दौर में इंसानों की कोई कीमत नहीं रह गई, रह गई है तो पैसे की कीमत। कम शब्दों में आपकी रचना ने सोचने पर मजबूर कर दिया मौजूदा हालात को। आपने जो लिखा वह महत लघुकथा नहीं है, सच्चाई है इस दुनिया की।
जवाब देंहटाएंहाँ ....ऐसा ही होता है ..जब मानवता मर जाती है ..पैसा ही सबकुछ हो जाता है ...
जवाब देंहटाएंभाई सुनील जी!
जवाब देंहटाएंबाजारूपन जहाँ पहुँच जाता है मानवता वहाँ कलंकित होती है। मर्मस्पर्शी लघुकथा। सहज,सटीक एवं प्रभावशाली लेखन के लिए बधाई! कृपया बसंत पर एक दोहा पढ़िए......
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शहरीपन ज्यों-ज्यों बढ़ा, हुआ वनों का अंत।
गमलों में बैठा मिला, सिकुड़ा हुआ बसंत॥
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
संवेदनहीनता का बढ़िया उदहारण !
जवाब देंहटाएंसमाज के सच को उजागर करती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएं---------
ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
aaj ke samay ke liye ek dum sateek rachna...ham sab aise hi hain........!!
जवाब देंहटाएंsamaj ka sach!
सुनील जी,
जवाब देंहटाएंलघु कथा के माद्यम से दुनियाँ की सच्ची तस्वीर पेश करने का आपका अंदाज़ अच्छा लगा
स्वार्थपरता और संवेदनहीनता ने मनुष्य को मनुष्यता से बहुत दूर कर दिया है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लघु कथा
Sunil ji..Ab kya kiya jaaye......? Swarth ...Swarth....Swarth. Bas har jagah Swarth.......Swarth..Swarth...Aur sirf Swarth.
जवाब देंहटाएंChunki abhi bhi kuch Achhe log hain ...isilie umeed karni chaahiye ki ek din sab theek ho jayegaa.
अब बच्चा भी सीख जाएगा धीरे धीरे यही दुनियादारी :)
जवाब देंहटाएंसुनील जी बहुत ही सटीक बात कम शब्दों में, आज ज्यादा पड़ने का समय कहा है, हायकू ही ठीक है बधाई
जवाब देंहटाएंसमाज का दोगलापन.हम भी तो इसी का हिस्सा हैं.
जवाब देंहटाएंपर सच तो लिखा है आपने.बधाई.
आजकल के परिवेश पर सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
bahut shasakt laghukatha...
जवाब देंहटाएंachha vyang...........
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक लिया है आपने, आशा है की आप ब्लॉग पर समय समय पर पधारकर मार्गदर्शन देंगे.
जवाब देंहटाएंअरविन्द जांगिड,
सीकर,
राज.
कनिष्ठ लिपिक
सुनील कुमार जी ,आपके ब्लोक पर पहली बार आई हु --माता -पिता की तस्वीर देखकर मेरा दिल बहुत खुश हुआ --जो इन्सान माँ -बाप की इतनी इज्जत करता हे --वो यकीनन शानदार हे --अपना फ़्लोअर(दोस्त ) बनाना चाहुगी --धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंachi rachna........
जवाब देंहटाएंभाई सुनील जी बसंत पर आपको हार्दिक शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंआपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
आदरणीय सुनील जी
जवाब देंहटाएंआज के दौर में इंसानों की कोई कीमत नहीं रह गई
संवेदनहीनता का बढ़िया उदहारण !