अभावों से मेरा हमेशा चोली दामन का साथ रहा है | बचपन से शुरू क्या
हुआ आज तक मुझे यह छोड़ने को तैयार नहीं है | कई बार वक्त ने कोशिश भी
की मग़र हमारी दोस्ती नहीं टूटी | और धीरे धीरे हम दोनों एक दूसरे के पूरक
बन गए | बेटे की फ़ीस जमा करने की आखिरी तारीख़ मुझे ऐसी लग रही थी
जैसे मेरी फाँसी का दिन नियत कर दिया गया है | उस पर बेटी की शादी की चिंता
मकान मालिक आज कल मुझे यमराज लगता था | कुल मिला कर एक आम
आदमी की सभी समस्याएं मेरे आगे पीछे घूम रही थी | इन समस्याओं का हल
मुझे आत्महत्या की सिवा दूसरा कोई नज़र नहीं आ रहा था | अचानक फोन
की घंटी बजी बड़े भाई का फोन था" माँ नहीं रहीं " यह खबर मेरे लिए फाँसी का फंदा
गले तक आने जैसी थी | माँ के मरने का दुख उस पर गाँव आने जाने के किराये की
चिंता में डूबा हुआ बहुत देर तक कुर्सी पर बैठा रहा | पत्नी और बच्चे मेरे आसपास
घेरा बना कर खड़े थे जैसे क़ी मै कोई मदारी हूँ | मेरा अगला खेल क्या होगा ?
अचानक ही मुझे कुछ याद आया और चल पड़ा स्टेशन क़ी ओर माँ के अंतिम दर्शन
के लिए रास्ते भर माँ के बारे में सोचता रहा ओर माँ क़ी ममता ओर उसके त्याग क़ी
कहानी मुझे सच्ची लगने लगी थीं | क्योंकि पिता क़ी वसीयत के अनुसार माँ के मरने
के बाद खाते में जमा पैसे हम दो भाई में बाँट दिए जाएँ | अब मेरी आँखों से आंसू
बह निकले थे उस माँ के लिए जो खुद मर कर मुझे एक नई ज़िंदगी दे गयी .........
और दिल ने कहा माँ तो आख़िर माँ ही है ..................
atyant bhawbhini baaten likhi hai....man bhar aaya....
जवाब देंहटाएंAankhen nam ho gayeen!
जवाब देंहटाएंमाँ की ममता जिसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है.. माँ अपने बच्चों के लिए क्या है जो नहीं कर सकती..सब कुछ न्योछावर कर चली जाती है ... आँखे भर आईं......
जवाब देंहटाएंमां होती ही ऐसी है। दुनिया में ऊपर वाले ने एक मां ही तो बनाई है जो खुद भी मर कर बच्चों को नया जीवन दे जाती है। अच्छी पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसुनील जी, सच में आपकी हर पोस्ट दिल से, दिल के करीब होती है।
maa ki baat hi alag hai, maa yani ishwar
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही ..सिर्फ माँ.....कोई शब्द नहीं वयां कर सकता माँ को ...आपका आभार
जवाब देंहटाएंसच कहा सुनील भाई, मां तो आखिर मां ही होती है।
जवाब देंहटाएं---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
माँ तो सदा हितैषी रही है।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
माँ की महानता को दर्शाती एक भावभीनी, मार्मिक कथा !
जवाब देंहटाएंसुनील जी,
जवाब देंहटाएंइस जग में माँ सा दूसरा कोई नहीं !
बड़ा ही मार्मिक चित्रण है !
बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है मनोभावों का.
जवाब देंहटाएंसादर
_________
इस बसंत के मौसम में क्यों ...
माँ .
जवाब देंहटाएंईश्वर के सिवा इसका कोई synonym नहीं.
सलाम.बहुत मार्मिक चित्रण.
माँ तो सदा ही भला चाहती है...बच्चों की ख़ुशी चाहती है.....
जवाब देंहटाएंमाँ तो आखिर माँ है....
जवाब देंहटाएं"जीवन के साथ भी जीवन के बाद भी..."
माँ निसंदेह माँ होती है , उसकी ममता का मुकाबला नहीं।
जवाब देंहटाएंनिःशब्द...
जवाब देंहटाएंभाई सुनील कुमार जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात कही है | माँ तो माँ ही होती है , उसका कोई विकल्प नहीं |
मार्मिक स्मृतियां....
जवाब देंहटाएंमाँ तो माँ ही है, उस जैसा कोई और कहाँ !
जवाब देंहटाएं-------------------------------------------------
कृपया इसे भी देखें ! माँ
माँ, अपने बच्चों के लिए..भगवान का ही दूसरा रूप होती है। पोस्ट दिल को छू गई।
जवाब देंहटाएंसुनील जी! कुछ भी कहने के लायक नहीं छोड़ा आपने!! बस दिल में एक टीस लिये जा रहा हूँ!!
जवाब देंहटाएंmaa to aakhir maa h na...marmik rachna.
जवाब देंहटाएंSunil ji,
जवाब देंहटाएंAapki rachana padhake dil tadap jata hai.
Har koi roya hoga aur man hi man apni maa ko yaad kar raha hoga.
Bahot bahot dhantavad.
A C Kulkarni
इसीलिए तो माँ को भगवान का दर्ज़ा देते हैं...
जवाब देंहटाएंइतना सिर्फ वो ही सोच सकती है...
ओह...
जवाब देंहटाएंमार्मिक !!!
samwednapurna.......
जवाब देंहटाएंबहुत दिल को छूने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएंमां की ममता की कोई उपमा नहीं।
जवाब देंहटाएंपढ़कर आंखें नम हो गईं।
दिल को छू गई ये लघुकथा.
जवाब देंहटाएं:) सुंदर.
जवाब देंहटाएंदिल को इतनी गहराई से छू गयी कि आँखो से आँसू छलक आये ।
जवाब देंहटाएंसच माँ जितना पवित्र शब्द कोई और हो ही नही सकता ।
माँ तो माँ ही होती है.
जवाब देंहटाएंडॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
जवाब देंहटाएंडॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
“वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
I am touched... truelly...
जवाब देंहटाएंDa most beautiful woman for evry gal n guy is thr mother... very nice post :)
very touching sequence.....
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबेहद ही मार्मिक एवं दिल को छूने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंमान्यवर धन्न्यवाद!
जवाब देंहटाएंआप हमारे ब्लॉग पर पधारे और अपनी सार्थक टिप्पणी दी।
नन्हा पौधा
हरा हरा एक नन्हा पौधा ,
लगा मेरे उपवन में |
जिसे देख कर फूल ख़ुशी के
खिलते जाते मेरे मन में |
धूप यह खाता , पीता पानी
यही तो इसका दाना पानी |
बढ़ते बढ़ते बढ़ जायेगा
एक घना वृक्ष यह बन जायेगा |
किसी राह का थका मुसाफ़िर ,
इसके नीचे नींद चैन की सो जायेगा |
-सुनील कुमार जी द्वारा प्रेषित
http://sunilchitranshi.blogspot.com/
देखिये:-
http://pathkesathi.blogspot.com/
बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है मनोभावों का.
जवाब देंहटाएंसादर
मां की वसीयत, उसकी ममता.
जवाब देंहटाएंbhavpurn lagi laghu kahani.....bahut sunder.
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