रविवार, फ़रवरी 20, 2011

अपना अपना भाग्य


क्यों मिला उसको ?  
सपनों का संसार ,
अपनों का प्यार |
क्यों मिला मुझको ?
सपनों का टूटना ,
अपनों का रूठना |
क्यों पाया उसने ?
द्रुत गति का कालचक्र 
क्यों मिलीं मुझे ? 
बंद घड़ी की सूइयां |
प्रश्न है अनेक ,
पर उत्तर है एक 
अपना अपना भाग्य !

38 टिप्‍पणियां:

  1. जी हाँ, भाग्य का अपना रोल है जीवन में परन्तु कर्म प्रधान है.

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  2. जिन चीजों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं वही भाग्य ! और दुर्भाग्य से ऐसा बहुत कुछ होता है !! अपना जीवन खुद ही लिखकर बहुत कम लोग ही जीते होंगे । कहना ही पड़ता है भाग्यं फलती सर्वदा ! इसको अपना दास या दोस्त बनाकर जीने की कोशिश करना चाहिए हाँ इससे लड़ तो सकते नहीं ! बहुत अच्छी रचना है ...

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  3. ye bhagye hi hai
    jivan mai jo hota hai
    har din naye aayam aana
    jingdi mai sab kuch badal jana
    sab bhagye hi hai
    sunder rachna

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  4. भाग्य तो है ही मगर कर्म के बैगौर कुछ संभव नहीं....कुंवर जी और भूषन जी से सहमत...

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  5. बहुत बढ़िया जो भाग्य में होता है वह होकर ही रहता है ..स्कूल में पढ़ी एक एकांकी याद आ गयी उसका शीर्षक भी' अपना अपना भाग्य' था बहुत ही मार्मिक कहानी थी, आज भी मानस पटल पर उभर आती है..... हार्दिक शुभकामना

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  6. भाग्य और कर्म का संगम हो तभी कुछ मिल पाता है..सुन्दर प्रस्तुति..

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  7. बिल्कुल सही ...समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को कुछ नहीं मिलता ....लेकिन कर्म किये बिना भी कुछ हासिल नहीं होता

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  8. जो मिल जाता है वह अपना आकर्षण खो देता है,और कभी कुछ न मिलकर भी नई मंजिलों का पता बता जाता है, इसलिये हर हाल में खुश रहना ही सौभाग्य नहीं है क्या ?

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  9. वाह! क्या बात है, सब भाग्य का ही तो खेल है!

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  10. कहते हैं न तकदीर से ज्‍यादा और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता। यही तो जीवन है।
    जीवन दर्शन को प्रस्‍तुत करती पोस्‍ट। बधाइ हो आपको।

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  11. सुनील जी!
    कभी किसी को मुकम्मिल जहाँ नहीं मिलता,
    कभी ज़मीं तो कभी आसमाँ नहीं मिलता.

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  12. sunil ji, meri hausle ko pusht karne ka bahut bahut dhanyvad ..aapki kavita ke liye kahungi ki ..door ke dhol suhavane lagte hain ...har kisi ko koi n koi kami khatkati hai ....kavita achchi lagi...

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  13. भाग्य अपनी जगह, कर्म अपनी जगह.
    किसी भी स्थिति में भाग्य के भरोसे तो नहीं बैठा जा सकता ।

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  14. सही बात ...भाग्य की भूमिका को कौन नकार सकता है....

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  15. बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति.
    भाग्य ही से तो सब है.
    सलाम.

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  16. sahi hai kintu bhagy aur karm sath-sath chalte hain .kabhi-kabhi kuchh aisa ghatit jaroor ho jata hai jisse admi bhagy ko kosne par vivash ho jata hai.

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  17. भाग्य की भी अपनी एक महिमा है, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  18. हम लोग सिर्फ कर्म ही कर सकते हैं , भाग्य तो विधाता के ही हाथ में है ।

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  19. bahut sunder lagi rachna .......
    hamare paas jo nahi hai uska khed nahi karna chhiye jo hai uski khusiya manani chahiye.....

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  20. आदरणीय सुनील कुमार जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आप बिल्कुल सच कहते हैं
    भाग्य साथ नहीं देता तो कर्म किए जाओ , किए जाओ … सकारात्मक परिणाम नहीं मिलते …

    लेकिन , असफलता की आशंका में कर्म करना छोड़ नहीं देना चाहिए ।
    साथ ही,औरों के भाग्य से अपने भाग्य की तुलना करने पर निराशा हाथ लगना तय है ।

    प्यारो न्यारो ये बसंत है !
    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  21. भाग्य तो है ही मगर कर्म के बैगौर कुछ संभव नहीं| धन्यवाद|

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  22. भाग्य से खफा ?
    पर उसके सहारे लिखी सुन्दर रचना |

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  23. जिसे हम कर्म मानते हैं ..वह भी भाग्य का परिणाम होता है .. नहीं तो कर्म करने वाले सभी एकसमान होते ...सुन्दर रचना ..

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  24. सच बात है भाग्य के बिना कुछ नही मिलता। शुभकामनायें।

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  25. अपना अपना भाग्य....सत्य वचन
    regards

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  26. बहुत सुंदर रचना
    कभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपने एक नज़र डालें . धन्यवाद .

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  27. कर्म से बनाया हुआ भाग्य सौभाग्य होता है !
    मगर भाग्य को एकदम से नकार भी नहीं सकते !
    सुन्दर रचना !

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  28. बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ है सुनील जी , अपने से भी काफी मेल खाती है !

    अपना-अपना भाग्य ! कोई माने न माने मगर यही सत्य है, आखिरकार !

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