सोमवार, दिसंबर 13, 2010
शहीदों को सलाम !
लीजिये आज एक मौका फिर मिल गया हमारे महान नेताओं को
शहीदों के नाम पर ...............(शब्द अपने आप लगा लीजिये) आँसू
बहाने का | आज संसद पर हमले की नौवी बरसी है जिसमें देश के नौ
जवान शहीद हुए थे वैसे इन नेताओं की सोच और मानसिकता एक आम आदमी
की समझ से परे ही लगती है| आखिर यह चाहते क्या है ?
कभी यह बुलेटप्रूफ जाकिट का मुद्दा उठाते है कभी यह किसी की शहादत
को सवालों के घेरे में खड़ा कर देते है , कारगिल युद्ध के समय ताबूत में
कमीशन का मुद्दा खैर छोडिये कहाँ तक गिनाये .................
मग़र शहीदों श्रद्धांजली देने में पीछे नहीं रहते है |एक रचना के माध्यम से देखिये |
ताबूत कांड
शहीदों की चिताओं पर मेले हम लगाते है |
और उनकी वीरता के गीत भी सुनाते है
ऐसी श्रद्धांजली मैंने कहीं देखी नहीं ,
जिसमें ताबूतों की भी पैसे खाये जाते है |
एक प्रार्थना
आज मेरे इन शहीदों पर ,
एक अहसान आप कीजिये |
यदि मान नहीं दे सकते
तो अपमान मत कीजिये |
चेतावनी
यदि शहीदों के बच्चे भूखे प्यासे सोते है
बूढी माँ के आँचल को आँसू ही भिगोते है
शहीदों की विधवाए यदि दर दर भटकेंगी |
तो फिर देश की सीमाये भी सैनिकों को तरसेंगी |
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टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सुनिल जी किस किस की तारीफ करू। बहुत सुन्दर। और हमारे नेताओं की बात ही मत किजिए। ये सारे काम डेली रूटीन समझ कर करते है। अरे ये लोग नौ साल में एक आरोपी को सजा नही दे सके तो और क्या करेगें।
जवाब देंहटाएंnihsandeh yah rachna vatvriksh par honi chahiye ...
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी...शहीदों की शहादत पर भी राजनीति करना आज के नेताओं का पेशा है...आभार
जवाब देंहटाएंआपकी तीनों लघु कविताएँ देश के वर्तमान चिंतनीय परिदृष्य को बहुत खुबसूरती से रेखांकित कर रही हैं । आभार...
जवाब देंहटाएंamar shahidon ko vinamr shraddhanjali.
जवाब देंहटाएंshahadat par rajneeti to karte hi hain ye desh ke dushman.
apke bhav ko desh samjhe,desh ke tathakathit netagan samjhen..yahi shubhkamna hai.
क्षणिकाओं में गहन बात ...नेताओं की बातों से शर्मसार हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन
सभी लघु कथाएं बेहद सुन्दर और शानदार है! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंसुनील जी इससे बेहतर तो कुछ हो ही नही सकता…………व्यंग्य और दुख का सम्मिलित चित्रण हैं ये क्षणिकायें………………सभी सच दर्शाती हुयी।
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ने मुझे मेरी पुरानी पोस्ट याद दिला दी.
जहाँ की खुशबू,हवा और जुबाँ से हम महकते हैं
जिसकी हिफाज़त को हम धरम ईमान कहते हैं
सीने में जहाँ शहीद होने के अरमान रहते हैं
जिसके नाम पे हम, आज भी नाज़ करते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं !
पिता की आँखों मे जहाँ आंसू न बसते हैं
माँ की दवाई को पैसे न बचते हैं
पेंन्शन को दौड़ दौड़, मेरी बेवा के पांव न थकते हैं
खाने को कभी जहाँ पकवान न पकते हैं
हाँ! उसी को मेरी जाँ शहीद का वतन कहते हैं
ताबूत से जहाँ मेरे पैसे छनकते हैं
बेवा की पेंन्शन से प्याले छलकते हैं
न करो घर से बेघर, बीबी बच्चे कगरते हैं
घर वाले जहाँ जी जी के मेरे रोज मरते हैं
उसी को शहीद का वतन कहते हैं
रचना दीक्षित जी नमस्कार , आपकी रचना तो अतिसंवेदनशील है और बहुत अच्छी लगी आपकी रचना के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदेश ने सच भुला दिया है शहीदोँ को । उन्हेँ नमन।
जवाब देंहटाएं.
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मेरे ब्लाग पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
... bhaavpoorn va samvedansheel rachanaa ... bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएंसुनील जी.....आपने तीन क्षणिकाओं के माध्यम से जो बाते सामने रक्खी हैं उनमें व्यक्त आपकी भावनाओं से मैं पूरी तरह सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंसार्थक व् समसामयिक मुद्दे पर लिखने के लिए आपको आभार. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
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जवाब देंहटाएंअंतरात्मा को मथ देने वाली इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार।
शहीदों को नमन !
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सुनील जी!
जवाब देंहटाएंआज जब आदर्श सोसाइटी कांड देखता हूँ तो लगता है कि अगर यही हाल रहा हमारी वीरों के प्रति श्रद्धा का तो बहुत जल्द यह धरती वीरों से खाली हो जाएगी..
आपके तीनों मुक्तक नमन योग्य हैं, इनकी प्रशंसा करना भी औपचारिकता सा होगा!
बड़ी ही संवेदनशील कवितायें।
जवाब देंहटाएंसभी क्षणिकाएँ हृदयस्पर्शी ....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - पैसे का प्रलोभन ठुकराना भी सबके वश की बात नहीं है - इस हमले से कैसे बचें ?? - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
सही चेतावनी।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ज़रूरत है कि इस चेतावनी पर ध्यान दिया जाए
जवाब देंहटाएंsach ka aaina.......ati samvedansheel rachna.
जवाब देंहटाएंक्षणिकाओं के माध्यम से अच्छी चेतावनी। शहीदों को हमारा भी नमन।
जवाब देंहटाएंekdam bejod.kuch kahna mumkin nahin.
जवाब देंहटाएंशहीदों को नमन ....
जवाब देंहटाएंआपके मनोभाव चिंतनीय हैं ....
शहीदों की शहादत पर भी राजनीति शर्मनाक है ....
चिंतन-मनन के लिए प्रेरित करने वाली रचनाएं प्रस्तुत की है आपने।
जवाब देंहटाएंवीर शहीदों को नमन।
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशहीदों को समर्पित आपकी तीनों कविताओं बेहतरीन हैं.नेताओं पर व्यंग भी ज़ोरदार किया है आपने.
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई से कही गई और दिलों की गहराइयों में
जवाब देंहटाएंपैठ करने वाली "शहीदी " कविता के लिये मुबारकबाद।
सत्य कहा आपने...
जवाब देंहटाएंउद्वेलित करती एक सार्थक रचना...
sunil bhai ji
जवाब देंहटाएंdesh ke sachche saputo ko koti koti naman.
aur aapko itni sundar avam lazwab tarike se sahi baat ko kahne ke liye vo bhi itni behatreen xhnikaon ke sath,bahut bahut badhai.
poonam
शहीदों कि विधवाएं यदि डर-डर भटकेंगी,
जवाब देंहटाएंतो देश की सीमायें सैनिकों को तरसेंगी.
बिलकुल सही कहा आपने,शहादत का गर ये अंजाम होगा तो कौन बेटा,कौन पति देश पर कुर्बान होगा....
sahi mayene me apki marmsprshi ksahanikaye un shahido ke liye shradhanjai hai sunil ji.......bahut achhi lagi....
जवाब देंहटाएंआपकी सार्थक कवितायें शहीदों को श्रधांजलि और वयवस्था पर करारा प्रहार है.
जवाब देंहटाएंआपकी चेतावनी को बा आवाजे बुलंद दोहराने का मन कर रहा है।
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई, इस सोच को नमन।
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प्रेत साधने वाले।
रेसट्रेक मेमोरी रखना चाहेंगे क्या?
आदरणीय सुनील कुमार जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
आपकी भावनाएं स्तुत्य हैं …
काश ! आपकी भावनाओं का एक प्रतिशत भी बेशर्म नेताओं के पास होता … … …
रचना दीक्षित जी की रचना और उसमें निहित भाव वंदनीय हैं । उन्हें भी बहुत बधाई और आभार !
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शिवांगी और आरुषि की बनाई कृतियां बहुत सुंदर है… दोनों को मेरा स्नेह और आशीर्वाद !
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनील जी,
जवाब देंहटाएंआपने दुखती रग पर उंगली रख दी,
"शहीदों की चिताओं पर मेले हम लगाते हैं ,
और उनकी वीरता के गीत हम सुनाते हैं
ऐसी श्रधांजलि मैंने कहीं नहीं देखी,
जिसमें ताबूतों के भी पैसे खाए जाते हैं !"
सारे मुक्तक अच्छे बन पड़े हैं और यथार्थ को दर्शाते हैं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
संवेदनशील प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं3/10
जवाब देंहटाएंरचना बेहद कमजोर है
लेकिन भीतर के भाव संवेदनशीलता प्रभावित करती है
आभार
सामने देश माता का भव्य चरण है
जवाब देंहटाएंजिह्वा पर जलता हुआ एक बस प्रण है
काटेंगे अरि का मुंड या स्वयं कटेंगे
पीछे परन्तु इस रन से नहीं हटेंगे
पहली आहुति है अभी यज्ञ चलने दो
दो हवा देश को आग जरा जलने दो
जब ह्रदय,ह्रदय पावक से भर जायेगा
भारत का पूरा पाप उतर जायेगा
देखोगे कैसे प्रलय चंड होता है
असिवंत हिंद कितना प्रचंड होता हुई
बाँहों से हम अम्बुधि अगाध थाहेंगे
धस जाएगी यह धरा अगर चाहेंगे
तूफ़ान हमारे इंगित पर ठहरेगा
हम जहाँ कहेंगे मेघ वही घरेगा
Hello sir,
जवाब देंहटाएंSach Aap kitna sundar likhtein hain, Mujhe aapke lekhon se bahut adhik prerna mili.