सोमवार, अप्रैल 16, 2012

मैन इज सोशल ए एनीमल.....

मैन इज सोशल ए एनीमल यह पंक्तियाँ आजकल मुझे अक्सर याद आतीं हैं और किसी  
हद तक बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं इसकी एक छोटी से बानगी यहाँ देखिये ।


पहले हम कुत्ते की तरह भौंकतें हैं ।
जब कोई शेर की तरह दहाड़ता है 
हम भींगी बिल्ली बन जाते हैं ।
और चूहे की तरह अपने बिल में घुस जातें हैं ।
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।


दूसरों के धन पर गिद्ध द्रष्टि डालते हैं 
अपने धन पर साँप की तरह कुंडली मार कर बैठते हैं
लोमड़ी की तरह चालाकी करके दूसरों के धन को 
मौका पाते ही हम अजगर की तरह निगल जाते हैं
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।



27 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर

    बिलकुल यही कारण है ।

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  2. रंगा सियार है आदमी.............
    गिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी....................

    बढ़िया रचना सर

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  3. बहुत बढ़िया...इतने सारे जानवरों के गुण हैं आदमी के पासः)

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  4. प्राणियों जैसी आदतें बना ली हैं हमने अपनी।

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  5. मैन इज सोशल ए एनीमल.....
    जी हाँ यही सच है

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  6. इन्हीं वृत्तियों के कारण,हम बस प्राणी मात्र रह गए हैं,सामाजिकता लुप्त होती जा रही है।

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  7. सोशल एनिमल की परिभाषा और मतलब अब समझ में आने लगा है.

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  8. क्या बात है! आपने इस सामाजिक प्राणी की खूबियों को इस काव्य में बहुत अच्छी तरह समेटा है।

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!

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  10. जानवर भी आज के इंसान से बेहतर हैं.सुन्दर.

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  11. लाजवाब शानदार उम्दा प्रस्तुति

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  12. हंस की तरह विवेकी हैं, तितली की तरह फूलों के दीवाने हैं, चींटी की तरह बचत करने वाले हैं...

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  13. हा हा हा..सामाजिक प्राणी को खूब आईना दिखाया आपने।

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  14. विचारणीय बात.....ज़बरदस्त व्यंगात्मक पंक्तियाँ

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  15. सच कब हम जानवर बन जाते हैं पता ही नहीं चलता....सेर को सवा सेर मिलता है तो शिकायत करता है..

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  16. बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति....

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