मेरी पिछली पोस्ट आदत .. (मतला और एक शेर पर )पर आदरणीय रविकर फैजाबादी ने
टिपण्णी में कहा था दो शेर और जोड़िये तो आज उनके आदेश का पालन कर रहा हूँ ।
यह पोस्ट उन्ही के नाम ........
हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
यह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
रात होते ही मैं कब्रगाहों में,
हर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ।
सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
आप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की,
अब आदत जो पड़ गयी हैं।
कमाल के शेर हैं सब ... बहुत नायाब अंदाज़ आपका हमेशा दिल में उतरता है ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
शुभकामनाये ||
बेहतरीन और खूबसूरत शेर हैं , बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हैं. वाह वाह..
जवाब देंहटाएंbehtareen...!
जवाब देंहटाएंkunwar ji
Behtariin...
जवाब देंहटाएंati sundar
जवाब देंहटाएंहर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,..सुनील जी
बहुत दिनों से पोस्ट पर नही आये आइये स्वागत है,..
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
ख़ूबसूरत रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .
शेर नहीं है ये
जवाब देंहटाएंसवा शेर है
गहरी सोच की कायल हुई
कभी मेरी चौखट पर भी तशरीफ लाएं
सादर
bahut lajabaab sher hain.
जवाब देंहटाएंवाह.................
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...सभी शेर लाजवाब.
अनु
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा शेर..बधाई!
जवाब देंहटाएंआदतें कहाँ जाती हैं आसानी से।
जवाब देंहटाएंlaajabaab..
जवाब देंहटाएंहर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
हर एक शेर पर आपकी छाप लगी है... बहुत ही लाजवाब हैं सारे के सारे शेर...
अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार
बहुत ही लाजवाब हैं सभी शेर...बधाई!!
जवाब देंहटाएंमाफ़ी चाहूंगा,मुझे एक भी शेर पसंद नहीं आया।
जवाब देंहटाएंसारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
जवाब देंहटाएंआप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की,
अब आदत जो पड़ गयी हैं।
सारे जहां का दर्दो गम समेत कर ,जब कुछ न बन सकता तो मेरा दिल बना दिया .
बढ़िया प्रयोगात्मक ग़ज़ल .
कृपया यहाँ भी पधारें -
जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटी
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अब कैंसर के इलाज़ के लिए अतिस्वर चिकित्सा (अल्ट्रा साउंड वेव्ज़).
sundar sher
जवाब देंहटाएंwahwa....
हटाएंsadhuwaad swikaren....
सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
जवाब देंहटाएंआप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की,
अब आदत जो पड़ गयी हैं।
रविकर जी के अनुरोध का अनुपालन बहुत अच्छी तरह हुआ. बहुत सुंदर शेर.
रात होते ही मैं कब्रगाहों में,
जवाब देंहटाएंहर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ..
वाह क्या बात है ... इंसान सच में बेवफा हो गए तो क्या किया जाये ...
सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
जवाब देंहटाएंआप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की,
अब आदत जो पड़ गयी हैं।
वाह,
बहुत सुंदर।
रात होते ही मैं कब्रगाहों में,
जवाब देंहटाएंहर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं\
lajabab badhai sunil ji
हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
.....wah kya baat hai.
हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
धरातल से जुड कर जीने वालों की बस यही तलाश है, एक निश्छल मन के भावों को सहज स्वर देकर आज को चित्रित कर दिया है, भई वाह !!!!!!!!!
bahut sundar -------aapne insaniyat dundhne ki badi achchi baat kahi
जवाब देंहटाएंहर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ।
Behatareen sher hain... abhaar
सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
जवाब देंहटाएंआप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की,
अब आदत जो पड़ गयी हैं। ...ati sunder.....
हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
जवाब देंहटाएंयह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
har shakhs ko insaan kaha bhi nahi ja sakta...bahut khoob
हम्म..तो आपको दुख उठाने की आदत पड़ गई है। आदत सुधारो भाई! ये सब बुरी आदतों की श्रेणी में आते हैं। :)
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