शुक्रवार, अप्रैल 20, 2012

आपकी फ़रमाइश पर ....(.चंद शेर)

मेरी पिछली पोस्ट  आदत .. (मतला और एक शेर पर )पर आदरणीय रविकर फैजाबादी ने
टिपण्णी में कहा था दो शेर और जोड़िये तो आज उनके आदेश का पालन कर रहा हूँ ।
यह पोस्ट उन्ही के नाम ........

हर शख्स को मैं इंसान कहूँ, 
यह तो मुमकिन ही नहीं ।
लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
मुझे आदत जो पड़  गयी हैं।

रात होते ही मैं कब्रगाहों में, 
हर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की, 
मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ।

सारे जहाँ का रंज ओ ग़म, 
आप मुझको ही दे दीजिये ।
मुझको तो ग़म उठाने की, 
अब आदत जो पड़ गयी हैं। 
     

34 टिप्‍पणियां:

  1. कमाल के शेर हैं सब ... बहुत नायाब अंदाज़ आपका हमेशा दिल में उतरता है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति |
    आभार ||

    शुभकामनाये ||

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन और खूबसूरत शेर हैं , बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको

    जवाब देंहटाएं
  4. भारतीय नागरिक20 अप्रैल 2012 को 9:59 am बजे

    बहुत सुन्दर हैं. वाह वाह..

    जवाब देंहटाएं
  5. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,..सुनील जी
    बहुत दिनों से पोस्ट पर नही आये आइये स्वागत है,..

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

    जवाब देंहटाएं
  6. ख़ूबसूरत रचना, सुन्दर भावाभिव्यक्ति .

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" की १५० वीं पोस्ट पर पधारें और अब तक मेरी काव्य यात्रा पर अपनी राय दें, आभारी होऊंगा .

    जवाब देंहटाएं
  7. शेर नहीं है ये
    सवा शेर है
    गहरी सोच की कायल हुई
    कभी मेरी चौखट पर भी तशरीफ लाएं
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह.................

    बहुत बढ़िया...सभी शेर लाजवाब.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  9. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।

    हर एक शेर पर आपकी छाप लगी है... बहुत ही लाजवाब हैं सारे के सारे शेर...
    अगर आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन होता हैं तो ये मेरे लिए बहुत बड़ी खुशी की बात होगी... आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही लाजवाब हैं सभी शेर...बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  11. माफ़ी चाहूंगा,मुझे एक भी शेर पसंद नहीं आया।

    जवाब देंहटाएं
  12. सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
    आप मुझको ही दे दीजिये ।
    मुझको तो ग़म उठाने की,
    अब आदत जो पड़ गयी हैं।
    सारे जहां का दर्दो गम समेत कर ,जब कुछ न बन सकता तो मेरा दिल बना दिया .

    बढ़िया प्रयोगात्मक ग़ज़ल .

    कृपया यहाँ भी पधारें -

    जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटी

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

    अब कैंसर के इलाज़ के लिए अतिस्वर चिकित्सा (अल्ट्रा साउंड वेव्ज़).

    जवाब देंहटाएं
  13. सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
    आप मुझको ही दे दीजिये ।
    मुझको तो ग़म उठाने की,
    अब आदत जो पड़ गयी हैं।

    रविकर जी के अनुरोध का अनुपालन बहुत अच्छी तरह हुआ. बहुत सुंदर शेर.

    जवाब देंहटाएं
  14. रात होते ही मैं कब्रगाहों में,
    हर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
    क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ..

    वाह क्या बात है ... इंसान सच में बेवफा हो गए तो क्या किया जाये ...

    जवाब देंहटाएं
  15. सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
    आप मुझको ही दे दीजिये ।
    मुझको तो ग़म उठाने की,
    अब आदत जो पड़ गयी हैं।

    वाह,
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  16. रात होते ही मैं कब्रगाहों में,
    हर रोज़ निकल पड़ता हूँ ।
    क्योंकि मुर्दों से दिल लगाने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं\

    lajabab badhai sunil ji

    जवाब देंहटाएं
  17. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।


    .....wah kya baat hai.

    जवाब देंहटाएं
  18. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।

    धरातल से जुड कर जीने वालों की बस यही तलाश है, एक निश्छल मन के भावों को सहज स्वर देकर आज को चित्रित कर दिया है, भई वाह !!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  19. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं ।

    Behatareen sher hain... abhaar

    जवाब देंहटाएं
  20. सारे जहाँ का रंज ओ ग़म,
    आप मुझको ही दे दीजिये ।
    मुझको तो ग़म उठाने की,
    अब आदत जो पड़ गयी हैं। ...ati sunder.....

    जवाब देंहटाएं
  21. हर शख्स को मैं इंसान कहूँ,
    यह तो मुमकिन ही नहीं ।
    लोगों में इंसानियत ढूंढने की,
    मुझे आदत जो पड़ गयी हैं।
    har shakhs ko insaan kaha bhi nahi ja sakta...bahut khoob

    जवाब देंहटाएं
  22. हम्म..तो आपको दुख उठाने की आदत पड़ गई है। आदत सुधारो भाई! ये सब बुरी आदतों की श्रेणी में आते हैं। :)

    जवाब देंहटाएं