मैन इज सोशल ए एनीमल यह पंक्तियाँ आजकल मुझे अक्सर याद आतीं हैं और किसी
हद तक बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं इसकी एक छोटी से बानगी यहाँ देखिये ।
पहले हम कुत्ते की तरह भौंकतें हैं ।
जब कोई शेर की तरह दहाड़ता है
हम भींगी बिल्ली बन जाते हैं ।
और चूहे की तरह अपने बिल में घुस जातें हैं ।
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।
दूसरों के धन पर गिद्ध द्रष्टि डालते हैं
अपने धन पर साँप की तरह कुंडली मार कर बैठते हैं
लोमड़ी की तरह चालाकी करके दूसरों के धन को
मौका पाते ही हम अजगर की तरह निगल जाते हैं
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।
हद तक बहुत सार्थक प्रतीत होती हैं इसकी एक छोटी से बानगी यहाँ देखिये ।
पहले हम कुत्ते की तरह भौंकतें हैं ।
जब कोई शेर की तरह दहाड़ता है
हम भींगी बिल्ली बन जाते हैं ।
और चूहे की तरह अपने बिल में घुस जातें हैं ।
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।
दूसरों के धन पर गिद्ध द्रष्टि डालते हैं
अपने धन पर साँप की तरह कुंडली मार कर बैठते हैं
लोमड़ी की तरह चालाकी करके दूसरों के धन को
मौका पाते ही हम अजगर की तरह निगल जाते हैं
शायद इसीलिए हम सामाजिक प्राणी कहलाते हैं ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबिलकुल यही कारण है ।
रंगा सियार है आदमी.............
जवाब देंहटाएंगिरगिट की तरह रंग बदलता है आदमी....................
बढ़िया रचना सर
Very heart touching lines...Thanks
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...इतने सारे जानवरों के गुण हैं आदमी के पासः)
जवाब देंहटाएंजी काफी हद तक सही है
जवाब देंहटाएंबढिया
प्राणियों जैसी आदतें बना ली हैं हमने अपनी।
जवाब देंहटाएंमैन इज सोशल ए एनीमल.....
जवाब देंहटाएंजी हाँ यही सच है
इन्हीं वृत्तियों के कारण,हम बस प्राणी मात्र रह गए हैं,सामाजिकता लुप्त होती जा रही है।
जवाब देंहटाएंसोशल एनिमल की परिभाषा और मतलब अब समझ में आने लगा है.
जवाब देंहटाएंवाह सटीक परिभाषा है ...
जवाब देंहटाएंक्या बात है! आपने इस सामाजिक प्राणी की खूबियों को इस काव्य में बहुत अच्छी तरह समेटा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंजानवर भी आज के इंसान से बेहतर हैं.सुन्दर.
जवाब देंहटाएं:) बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंkalamdaan
लाजवाब शानदार उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहंस की तरह विवेकी हैं, तितली की तरह फूलों के दीवाने हैं, चींटी की तरह बचत करने वाले हैं...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya vyangy...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंहा हा हा..सामाजिक प्राणी को खूब आईना दिखाया आपने।
जवाब देंहटाएंविचारणीय बात.....ज़बरदस्त व्यंगात्मक पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंसार्थक व्यंग...
जवाब देंहटाएंwaah.......gazab.....
जवाब देंहटाएंसच कब हम जानवर बन जाते हैं पता ही नहीं चलता....सेर को सवा सेर मिलता है तो शिकायत करता है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग,...
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया .....
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