मंगलवार, जनवरी 18, 2011

हास्य कविता एक समस्या और उसका हल



जब  हम अंधे, बहरे,  लंगड़े या लूले हो जाते है |
तो  हम इस  समाज की सहानुभूति पाते है |
मग़र जब हम ऊँचा या कम  सुनते है ,
तो उसी समाज में  हास्य का कारण बन  जाते है |
जब आप आपने को इस अवस्था में पाइये |
तो थोड़ा सा सृजन कार्य करके कवि बन जाइये |
मग़र तब  एक समस्या आपके सामने  आएगी |
मगर वह भी आपको थोड़ा  आनंद दे जाएगी  | 
क्योंकि जब जनता बोर बोर चिल्लाएगी | 
 तब आपके कानों में वंस  मोर की आवाज आयेगी | 

30 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बहुत सुन्दर! बेहतरीन!

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  2. सुनील जी!
    कविता का हास्य पक्ष होठों पर मुस्कुराहट लाता है बरबस! किंतु मानवता का पक्ष चिंता पैदा करता है... बचपन में जब आकशवाणी में बच्चे विकलांगों से सम्बंधित चुटकुले सुनाना चाहते थे तो हमारे प्रोड्यूसर उनको मना कर देते थे... आज भी उसी परिपाटी पर चलता हूँ...
    क्षमा करेंगे!

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  3. आदरणीय सलिल जी मैं आप की बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ ऊँचा सुनने का एक कारण बढती हुई उम्र होती है
    जिसमें उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं होता मग़र फिर भी लोग उस पर हँसते है भांति भांति के लतीफे सुनाये जाते है ऐसे लोगों को यह जबाब है किसी की विकलांगता का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए इस रचना का आशय यही है

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  4. बहुत खूब सुनीलजी.
    वन्स मोर, एक छक्का और.

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  5. shat pratishat sahi ...uncha sunne per hansne me der nahi lagti, yani makhaul udaate

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  6. वंस मोर... वंस मोर... हा... हा... हा.... बिलकुल सही बात. अच्छी, हल्की, फुल्की, मजेदार बात

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  7. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  8. hehehheee... bahut acchhe... sahe hai... ab to jaanbooj kar kam sunenge...

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  9. सुनील जी! मेरे अनुरोध को सहृदयता से ग्रहण कर आपने मेरा मान बढ़ाया है... इसके लिये आभारी हूँ आपका! बहुत डरते डरते लिख गया था..

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  10. स्वयं पर हँसना बहुत अच्छा लगता है कभी कभी।

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  11. सुन्दर रचना हंसते हंसाते कुछ कहना लिखना एक मुश्किल काम है।

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  12. अंधे , बहरे , अपाहिज , दुखियारे पर ही लोग तरस खाते हैं। यदि कोई स्वाभिमान के साथ जीना चाहे , तो लोग दुश्वार कर देते हैं उसका मकाम। फिर भी , सहानुभूति से तो बेहतर है , संघर्ष करते हुए , इज्ज़त के साथ मर जाना।

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  13. हा...हा...हा....

    बहुत खूब .....!!

    चलिए आपके लिए .....
    more ....more ...more .....

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  14. हास्य में भी आप व्यंग्य का पुट डालना नहीं भूले

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