आज का बेटा
ना जाने मै अपनी ज़िंदगी के
किस मोड़ पर मै आया हूँ
जो मुझे छोड़ ही नहीं सकती
मै उस माँ को छोड़ आया हूँ |
याद है मुझको, पड़ रही थी
धूप जब, ग़मों की मुझ पर
बस उसके आँचल की छाँव थी मुझ पे
मै आज यह भी भूल आया हूँ |
वह जो फर्ज की शक्ल में
अहसान हम सब पर करती है
इसको खुदगर्जी कहूँ या मज़बूरी ?
उनको कुछ सिक्कों से तोल आया हूँ |
बहते हुए आँसुओं से उसके ,
भींगते हुए आँचल का ख्याल था मुझको
बस इसलिए लौट कर आने का
झूठा दिलासा दे कर आया हूँ |
मार्मिक रवना लगी ।
जवाब देंहटाएंना जाने मै अपनी ज़िंदगी के
जवाब देंहटाएंकिस मोड़ पर मै आया हूँ
जो मुझे छोड़ ही नहीं सकती
मै उस माँ को छोड़ आया हूँ |
Aapne to zarozar rula diya!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जो मुझे छोड़ ही नहीं सकती
जवाब देंहटाएंमै उस माँ को छोड़ आया हूँ .....
अच्छी प्रस्तुति।......
बाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
मार्मिक है आपकी रचना!
अपनी माँ को भी ले आईये!
Aapka "kavya Tarang" par hardik abhivadan. aapaae bahut prasnnta hui.Bahut sundar aur bhavpurn rachana lagi aapki ...Shubhkaamnae!!
जवाब देंहटाएंmn ko chhu lene wala lekhan hai aapka.
जवाब देंहटाएंभईया.........दिल की गहराइयों को छू गयी आपकी यह रचना।
जवाब देंहटाएंना जाने ज़िन्दगी की कौन सी मजबूरी ऐसा करवाती है और ज़िन्दगी भर का दंश दे जाती है।
जवाब देंहटाएंना जाने मै अपनी ज़िंदगी के
जवाब देंहटाएंकिस मोड़ पर मै आया हूँ
जो मुझे छोड़ ही नहीं सकती
मै उस माँ को छोड़ आया हूँ |....
आपने तो आँखों में पानी भर दिया ....
माँ को छोड़ कर आना एक बेटी से भला कौन जन सकता है !
इसको खुदगर्जी कहूँ या मज़बूरी ?
जवाब देंहटाएंउनको कुछ सिक्कों से तोल आया हूँ |
बहते हुए आँसुओं से उसके ,
भींगते हुए आँचल का ख्याल था मुझको
बस इसलिए लौट कर आने का
झूठा दिलासा दे कर आया हू
dil ko chhu lene wali rachna!!!
बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मार्मिक कविता को पढ़वाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंकई बार झूठे दिलासे देने पड़ते हैं
अब आपके बीच आ चूका है ब्लॉग जगत का नया अवतार www.apnivani.com
जवाब देंहटाएंआप अपना एकाउंट बना कर अपने ब्लॉग, फोटो, विडियो, ऑडियो, टिप्पड़ी लोगो के बीच शेयर कर सकते हैं !
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धनयवाद ...
आप की अपनी www.apnivani.com
बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
Sunil ji ...badi achhi baat aapne kavita ke madhayam se kahi hai.
जवाब देंहटाएंSach men n jaane kitne hi BETEN (SONS) APNI-APNI maa se dur shahar men jeevan vayteet kar rahen hain ..kuch majbooribas, to kuch jaanbujhkar.
बहुत सुन्दर व मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंस्वाधीनता-दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...जय हिंद !!
प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआपको स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाई.
मन को छूने वाली रचना लिखी आपने.
मां,
जवाब देंहटाएंबहुत बड़ा अर्थ रखता है यह शब्द अपने आप में।
एक गीत के बोल हैं जिसे मैं अक्सर गुनगुनाता हूं-
''मां बच्चों की जां होती है, वो होते हैं किस्मत वाले जिनके मां होती है।''
मुझे तो लगता है कि मां के बारे में लिखने की ताकत मुझमें तो है ही नहीं। मैं जब भी मां के बारे में लिखने बैठता हूं मेरे हांथ कांपने लगते हैं और गला भर आता है। जब भी लिखता हूं तो लगता है कि मैं बहुत कुछ छोड रहा हूं। सच कहूं तो कुछ भी नहीं लिख रहा हूं।
मुझे याद है जब मेरी मां ने मुझे विदा किया था। चेहरे पर झूठी मुस्कान थी। मैं समझ रहा था। उनका दिल रो रहा था। लेकिन मन में बेटे की तरक्की की ललक के कारण मां अन्दर ही अन्दर घुट रही थी। लेकिन कहीं बेटा कमजोर न पड जाये इसलिए वह अपने दुख को चेहरे पर जाहिर नहीं होने देना चाह रही थी। मैं भी अपनी तरफ से यही कोशिश कर रहा था। हम दोनों अन्दर ही अन्दर रो रहे थे किन्तु एक दूसरे के लिए अपने आंसुओं को रोके हुए थे। लेकिन बस तक पहुंचते पहुंचते मैं अपने आंसुओं पर नियंत्रण करने में पूरी तरह असफल रहा। और मुझे पता है कि जैसे ही मैं आंख से ओझल हुआ हूंगा मां भी अपने आंसुओं के बांध को संभाल नहीं पायी होगी।
क्षमा करें मैं भावनाओं में बह गया था। किन्तु 'मां' शब्द ही ऐसा है कि जो भी लिखा जाय कम से भी कम है।
आपकी रचना बिल्कुल दिल को छू गयी। इस बहुत बढि या रचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
मार्मिक है आपकी रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बिल्कुल दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंमैंने निराला जी की कविता .वह तोड़ती पत्थर ! ब्लाग पर पोस्ट की है, अवश्य पढ़िए
आपका ब्लॉग पढ़ा बहुत बढ़िया लिखते हैं आप हर रचना दिल के बहुत करीब लगी ...शुक्रिया आपका मेरे ब्लॉग पर आने का और टिप्पणी देने का
जवाब देंहटाएंकिस्मत के खेल निराले हैं..
जवाब देंहटाएंसबने दिल में हज़ार दर्द पाले हैं..
आपकी कविता जीवन की बहुत कठिन सच्चाई से दो-चार करवा गई..
आपका आभार..
आज के बेटे पर आपकी यह रचना सत्यता के करीब है इंसानी रिश्ते जीवन की दौड में पीछे छूटते जा रहे है ।
जवाब देंहटाएंblog tak aane ka shukriyaa aapaki kavita padi vakai dil ki baate karate hai aap
जवाब देंहटाएंजो मुझे छोड़ ही नहीं सकती
जवाब देंहटाएंमै उस माँ को छोड़ आया हूँ |
in panktiyon mai maa ki mamta ki gahrai ka avlokan karake aur aaj ke putr ke vicharon ke virodhabhas pe kya sanvedansheel kataaksh kiya hai....
bahut khoob.....
sunil ji koi maa apne bete ke vikas me kabhi baaha nahi ban sakti.vaha to ant me apni mamata ka bhi tyag kar sakti hai. bas jo bhi uske liye kare keval farj nahi dilse kare.yehi vaha chahati hai..........sunder rachna hai....
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