बुधवार, जुलाई 07, 2010
इन आम आदमियों को भूल मत जाना
आम आदमी
तुमको तुम्हारे शहर की
सड़कों पर पड़ी ,
जिन्दा लाशों की कसम
मत डालना तुम ,
इन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न
इनको यूँही पड़ा रहने दो
चीखने दो चिल्लाने दो
तुम्हारी सभ्यता की कहानी
इनको ही सुनाने दो
सड़क पर पड़े हुए यह लोग
हमारे बहुत काम आते है |
तभी तो हमारे राजनेता
इनके भूखे नंगे तपते हुए पेटों पर
राजनीति की रोटियां सेंक जाते है |
इनको तरह तरह से
उपयोग में लाया जाता है |
कभी राम कभी अल्लाह के नाम पर ,
इनका ही तो खून बहाया जाता है
और कभी कभी अपनी सियासत,
चमकाने और ताकत दिखाने के लिए
इन आम आदमियों के नाम पर
भारत बंद बुलाया जाता है |
चुनावों के समय हम ,
इनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |
यह रोते है तो रोने दो
मत जगाओ, सोने दो |
जिस दिन यह सोता हुआ,
आम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन हो जायेगा |
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बेहतरीन एवं करारा व्यंग करती रचना है। बधाई सुनील जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सही !!
जवाब देंहटाएंव्यंग की बड़ी तेज़धार तलवार चलाई है........बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंकुछ तो बात है...अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंजिस दिन यह सोता हुआ,
जवाब देंहटाएंआम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन हो जायेगा |
--
उसी दिन का इन्तजार है हमें भी!
Very good poetry, keeping in changing trends. Now a days Aam Admi is becoming slogan of politicians. Nobody cares him except in elections.
जवाब देंहटाएंAam Admi ko jai ho
achhi kvita
जवाब देंहटाएंहालिया राजनिती ऐसी ही शिक्षा दे रही है!... बापू और भगतसींग की कहानियां तो सिनेमा तक ही सीमित रह गई है!...बढिया व्यंग्य पेश किया है आपने...धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबस इसी आम आदमी को ही तो जगाना है……………बहुत सुन्दर सन्देश देती कविता।
जवाब देंहटाएंमत डालना तुम ,
जवाब देंहटाएंइन पर झूठी सहानुभूति का कफ़न......
सही कहा है आप ने....
किसी की मदद करो तो दिल से करो....
झूठी सहानुभूति नहीं चाहिए....
चुनावों के समय हम ,
जवाब देंहटाएंइनको आम जनता कहते है |
और फिर आने वाले चुनावों तक ,
आम की तरह चूसते रहते है |..
Waah...Jabardast vyang likha hai..
.
bhai bahut khoob likha hai aap ne, aisa vyangya jitna teekha hai utana hee haqeeqat ke nazdeek bhee. keep it up is dhaar ko banaye rakhiye
जवाब देंहटाएंजरूरत तो आम आदमी के जागने की है....खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक कटाक्ष!!
जवाब देंहटाएंwaise ye aam aadmi jaagne waala naheen hai Suneel Ji, aur jagane kee jaroorat bhi mujhe samajh naheen aatee... Ye aam aadmi keede-makode jaisa nireeh jeev hai jo bana hee shoshit hone ke liye hai.... Rachna behatareen hai...
जवाब देंहटाएंजिस दिन यह सोता हुआ,
जवाब देंहटाएंआम आदमी जाग जायेगा ,
उस दिन से संसद का रास्ता
बहुत कठिन हो जायेगा |
पर मुश्किल तो यही है कि यह जागता ही नहीं है
बढिया रचना
सुन्दर सन्देश देती कविता।
जवाब देंहटाएंsahi hai.sunder kavita.........
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