क्यों सहती हो ?
कल कल बहती नदी यहाँ पर
मंद पवन भी कुछ कहती है |
फिर साँसों के रथ पर सवार हो कर,
तुम गुमशुम सी क्यों रहती हो |
थोड़ा सा ग़म बाँट लो तू भी
तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |
तुमने उसको अपना माना,
पर उसने, उसको अपना जाना
जिसने तुमको कुछ न माना,
क्यों उसको अपना कहती हो |
थोड़ा सा ग़म बाँट लो तुम भी
तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |
नहीं प्रेम अब एक तपस्या ,
अब तो यह व्यापार बना है |
और न तुम मीरा न वह कृष्ण ,
फिर विष का प्याला क्यों पीती हो |
थोड़ा सा ग़म बाँट लो तुम भी
तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |
जिस जीवन में बरसे प्रेम सुधा ,
तब एक प्रेम वाटिका बन जाती है |
क्यों नागफनी के जंगल में
अब खुशबू को ढूंढा करती हो |
थोड़ा सा ग़म बाँट लो तुम भी
तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |
क्यों नागफनी के जंगल में
जवाब देंहटाएंअब खुशबू को ढूंढा करती हो |
bahut khoobsurat chitr kheencha is rachna k dwara. badhayi.
bahut sundar
जवाब देंहटाएंवाह..!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना है!
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंकल कल बहती नदी यहाँ पर
जवाब देंहटाएंमंद पवन भी कुछ कहती है |
फिर साँसों के रथ पर सवार हो कर,
तुम गुमशुम सी क्यों रहती हो |
थोड़ा सा ग़म बाँट लो तू भी
तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |
..........क्या बात है सुनील भाई।
बेहद खूबसूरती से भावों को उकेरा है………आपकी पोस्ट कल के चर्चा मन्च पर होगी।
जवाब देंहटाएंवाह सुनील जी क्या बात है !!
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.
मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.
यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.
शुभकामनाएं !
"टेक टब" - ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
बहुत खूब, सही लिखा है आपने ....
जवाब देंहटाएंएक नज़र यहाँ भी मार ले-www.jugaali.blogspot.com
सुन्दर भावाभिव्यक्ति.....रचना अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंशानदार और दिल को छूने वाली लेखनी लिये साधुवाद एवं शुभकामनाएँ। यदि आप चाहते हैं या आपको आपत्ति नहीं हो तो आपके ब्लॉग पर उपलब्ध सामग्री को हम १७ राज्यों के पाठकों तक पहुँचाना चाहते हैं। प्रेसपालिका पाक्षिक समाचार-पत्र के पाठकों को भी इसका लाभ होगा, लेकिन कृपया पारिश्रमिक की आशा नहीं करें।-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है। इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, या सरकार या अन्य बाहरी किसी भी व्यक्ति से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३०९ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
जवाब देंहटाएंlajawab rachana hai. lage rahie.
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut sunder man ko chhu gai rachna.
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
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