मिटटी का प्रश्न
गुँथी हुई मिटटी का प्रश्न
घूमते हुए चाक से
मुझे क्या बनना है |
शीतल जल की गगरी
या गर्म पेय का पात्र,
मिटटी के प्रश्न पर
चाक का भौचक्का रह जाना |
चलते चलते रुक जाना
गहरी सोंच में डूब जाना |
क्षण भंगुर जीवन
और इतना गंभीर चिंतन
अचानक चाक का
मिटटी की मानव से तुलना करना
फिर खिलखिलाकर हँसना
और एक बार फिर वह
शुरू कर देता है घूमना |
गुँथी हुई मिटटी का प्रश्न
घूमते हुए चाक से
मुझे क्या बनना है |
शीतल जल की गगरी
या गर्म पेय का पात्र,
मिटटी के प्रश्न पर
चाक का भौचक्का रह जाना |
चलते चलते रुक जाना
गहरी सोंच में डूब जाना |
क्षण भंगुर जीवन
और इतना गंभीर चिंतन
अचानक चाक का
मिटटी की मानव से तुलना करना
फिर खिलखिलाकर हँसना
और एक बार फिर वह
शुरू कर देता है घूमना |
वाह।
जवाब देंहटाएंपहली बार ही इस ब्लॉग पर आया
और इतनी सुन्दर रचना पढ़ने को मिली!
मिट्टी और चाक से तो मरा जन्म-जन्मान्तर का सम्बन्ध है!
जवाब देंहटाएंप्रजापति बिरादरी में ही जन्म लिया है मैंने!
--
वर्ड-वेरीफिकेशन हटा दीजिए! टिप्पणी करने में
बहुत समय नष्ट होता है!
उम्दा रचना, जो सवाल मिटटी ने पूछा इंसान तो यह भी नहीं पूछ पाता, मजबूरन अथवा स्वार्थबश
जवाब देंहटाएंदिल और दिमाग की गहराइयों से निकली कविता / सुन्दर ,अति सुन्दर /
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंचाक का फिर से घूमना प्रभावित कर गया जी....
कुंवर जी,
बहुत खूब
जवाब देंहटाएं6.5/10
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट मौलिक कविता
छोटी सी कविता गहरी बात कह जाती है
और जीवन-दर्शन समझा जाती है
सुनील भाई, अच्छा लगा आपके भावों को महसूस करना।
जवाब देंहटाएं------
ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
पहली बार हूं आपके ब्लॉग पर....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना....
मिट्टी और मानव की तुलना ..गहन विचार
जवाब देंहटाएंखूबसूरत और सटीक बिम्ब .बहुत अच्छी लगी कविता.
जवाब देंहटाएंman manthan deti vichaarneey prastuti.
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से आने विचार दिए हैं ...
उत्कृष्ट रचना ....बधाई..
मिट्टी तो बेबस है कुम्हार जो उसे बनाएगा बन जायेगी पर मानव तो अपना भाग्य खुद गढ़ सकता है जो होना चाहे हो सकता है... बनाने वाले को अपने पीछे चलने पर विवश कर सकता है... कबीर कहते हैं न हरी मेरे पीछे फिरत कहत् कबीर कबीर...
जवाब देंहटाएंwah.....gazab ka likha hai.
जवाब देंहटाएंअरे वाह। इतना गम्भीर चिंतन गज़ब की प्रस्तुति है सुनील जी। बहुत अच्छा लगा पढ़कर। इसे मैने सेव कर लिया है। क्षणभंगुर है जीवन फ़िर भी फ़िक्र।
जवाब देंहटाएंबहुत ही गंभीर चिंतन कराती कविता।
जवाब देंहटाएंसादर
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएं