मेरी छत पर आकर सूरज
क्यों ? जल्दी ढल जाता है |
उगते सूरज की पहली किरण ,
जब मेरे आँगन में पड़ती है |
फटा बिछौना टूटी खटिया ,
यही तो उसको दिखती है |
धीरे धीरे तपता सूरज ,
जब मेरी रसोई में आता है |
खली बर्तन ,ठंडा चूल्हा ,
और नहीं कुछ वह पाता है |
लिए लालिमा सूरज ,
जब मेरी खिड़की पर आता है|
बूढ़ी माँ का पीला चेहरा ,
शायद वह देख ना पाता है |
इसी लिए तो मेरी छत पर ,
आकर सूरज जल्दी से ढल जाता है |
क्यों ? जल्दी ढल जाता है |
उगते सूरज की पहली किरण ,
जब मेरे आँगन में पड़ती है |
फटा बिछौना टूटी खटिया ,
यही तो उसको दिखती है |
धीरे धीरे तपता सूरज ,
जब मेरी रसोई में आता है |
खली बर्तन ,ठंडा चूल्हा ,
और नहीं कुछ वह पाता है |
लिए लालिमा सूरज ,
जब मेरी खिड़की पर आता है|
बूढ़ी माँ का पीला चेहरा ,
शायद वह देख ना पाता है |
इसी लिए तो मेरी छत पर ,
आकर सूरज जल्दी से ढल जाता है |
सभी मित्रों को गांधी जयन्ती,लालबहादुर शास्त्री-जयन्ती,दुर्गापूजा एवं रामनवमी- पर्व की हार्दिक वधाई ! अच्छा प्रस्तुतीकरण !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर एहसास और संवाद स्थापित करने का सार्थक प्रयास. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा !
मै आपके ब्लॉग को फॉलो कर रहा हूँ
मेरा आपसे अनुरोध है की कृपया मेरे ब्लॉग पर आये और फॉलो करें और अपने सुझाव दे !
Kya bat ....bahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना, बधाई.
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