मंगलवार, नवंबर 20, 2012

यही सत्य हैं.....

आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ।अपनी एक पुरानी  रचना ले कर , जो मेरी पसंद की हैं ।
आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी ।

 यही सत्य हैं....

झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया | 
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया | 
और शुरू हो गया तलाश का,
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया ।
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह,
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |


18 टिप्‍पणियां:

  1. आपको पढने में वाकई एक अलग ही सुख देने वाला है
    बहुत सुंदर
    क्या कहने

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  2. स्वागतम-
    आभार पुन: पढवाने के लिए ।।

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  3. अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....

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  4. बहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई

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  5. प्रशंसनीय। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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  6. क्या खूब.. कम शब्द.. पूरे भाव!

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  7. बहुत खूब .सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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