आज बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ ।अपनी एक पुरानी रचना ले कर , जो मेरी पसंद की हैं ।
आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी ।
यही सत्य हैं....
आशा करता हूँ आपको भी पसंद आएगी ।
यही सत्य हैं....
झाँक कर देखा खिड़की से
उमड़ते हुए बादलों को
दौड़ कर आँगन में आया |
और आकाश में बादलों का एक झुंड पाया |
और शुरू हो गया तलाश का,
एक अंतहीन सिलसिला
अचानक खिल उठा चेहरा |
और प्रसन्न हुआ अंतर्मन
क्योंकि मिल गयी थी मुझे ,
मुन्नी की गुड़िया और पत्नी का कंगन
फिर अचानक कुछ सोंच कर डर गया ।
यथार्थ के धरातल पर गिर गया |
दौड़ कर अन्दर आया
बंद कर ली खिड़की और दरवाजे
कहीं भिगो न दे यह,
मेरे तन का एकमात्र कपड़ा |
अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंsundar bhav abivyakti
हटाएंबहुत सुंदर भावअभिव्यक्ति,,
जवाब देंहटाएंrecent post...: अपने साये में जीने दो.
आपको पढने में वाकई एक अलग ही सुख देने वाला है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
क्या कहने
बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंaansuon se ....vaah...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंस्वागतम-
जवाब देंहटाएंआभार पुन: पढवाने के लिए ।।
अत्यंत भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंसत्य यही, हम वर्तमान हों..
जवाब देंहटाएंawesome poem Bhai ji :)
जवाब देंहटाएंबहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंक्या खूब.. कम शब्द.. पूरे भाव!
जवाब देंहटाएंभावनाओं का उमड़ घमड ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
बहुत खूब .सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति. कमाल का शब्द सँयोजन
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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