एक बार जब भगवान् शंकर धरती भ्रमण करके लौटे तो उनका मन बहुत अशांत था ।
पार्वती ने कहा जब आप धरती लोक से बापस आते थे तो बहुत प्रसन्न होते थे मगर इस
बार ऐसा क्या हुआ कि आपका मन अशांत हैं । भगवान् शंकर ने कहा तुम तो जानती हो
की मैं धरती पर लोगों को सुखी देखना चाहता हूँ लोगों का दुःख पूछता हूँ उनका निवारण
करता हूँ । और उनको सुखी करके बापस आ जाता हूँ । मगर इस बार मैं अपने को बहुत
असहाय अनुभव कर रहा हूँ । इस बार एक व्यक्ति के दुःख को मैं दूर नहीं कर सका ।
क्योंकि उसका दुःख था कि मेरा पड़ोसी सुखी क्यों हैं .............
पार्वती ने कहा जब आप धरती लोक से बापस आते थे तो बहुत प्रसन्न होते थे मगर इस
बार ऐसा क्या हुआ कि आपका मन अशांत हैं । भगवान् शंकर ने कहा तुम तो जानती हो
की मैं धरती पर लोगों को सुखी देखना चाहता हूँ लोगों का दुःख पूछता हूँ उनका निवारण
करता हूँ । और उनको सुखी करके बापस आ जाता हूँ । मगर इस बार मैं अपने को बहुत
असहाय अनुभव कर रहा हूँ । इस बार एक व्यक्ति के दुःख को मैं दूर नहीं कर सका ।
क्योंकि उसका दुःख था कि मेरा पड़ोसी सुखी क्यों हैं .............
अच्छा इस बीमारी का इलाज भगवान शिव के पास भी नही है।
जवाब देंहटाएंतब इसे लाइलाज बीमारी घोषित कर कुछ वैक्सीन वगैरह की खोज करनी चाहिए..
वाकई यह लाइलाज बीमारी ही है...मगर आश्चर्य इस बात का है कि भगवान शिव को भी इस बात का पता बहुत देर से चला...जबकि यह रोग तो अब जड़ पकड़ चुका है।
जवाब देंहटाएंये तो लाइलाज बीमारी है,इसका तो इलाज कर ही नही सकता,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
लाइलाज बीमारी है..
जवाब देंहटाएंइसका इलाज तो भगवान के पास भी नहीं है..
:-)
बहुत सटीक सुनील भाई पडोसी की कमीज़ का उजलापन ही खा रहा है हिन्दुस्तान को ऊपर से कोयला भी खाने लगे अब लोग पहले तो चारे से ही पेट भर लेते थे .और बड़ी बे -शर्मी से कहतें हैं -मैया मोरी कसम तोरी मैं ने ही (नाहिं )कोयला खायो ......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति,वाकई यह लाइलाज बीमारी है.
जवाब देंहटाएं:):) अक्सर लोग अपने दुख से कम दुखी होते हैं , दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं
जवाब देंहटाएंbahut prabhawshali vakaya......
जवाब देंहटाएंईर्ष्या का इलाज भगवान के पास भी नहीं है....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कथा.
सादर
अनु
बेहतरीन प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंबढ़िया |
जवाब देंहटाएंइसका इलाज किसी के भी पास नहीं ...
जवाब देंहटाएंसार्थक कहानी ...
बहुत बढ़िया कथा !!
जवाब देंहटाएंऔर की खुशी दुख देने लगे तो भगवान ही मालिक है।
जवाब देंहटाएंखूबसूरती से कहा गया एक सच ....इस बीमारी का इलाज तो किसी भी भगवान के पास नहीं हैं :)))
जवाब देंहटाएंउफ्फ , दु:ख सकारण हो तो हल हो सकता है किंतु दु:ख अकारण हो तो भगवान के पास भी इसका इलाज नहीं है.बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंबढ़िया कथा श्रृंखला चल रही है
जवाब देंहटाएंऐसा सिर्फ़ एक व्यक्ति मिला ... मुझे तो लगता है भगवान को हरेक व्यक्ति ऐसा ही मिला होगा, तभी तो सब दुखी ही देखी नज़र आते हैं इन दिनों।
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रश्न..
जवाब देंहटाएंभगवान भी ईर्ष्या का इलाज न कर सका!
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
यही तो त्रासदी है
जवाब देंहटाएंआज का कटु सत्य...
जवाब देंहटाएंमन की बात बड़े साफगोई से कह डाली ... सादर मेरे भी ब्लॉग पर आये
जवाब देंहटाएंkatu satya ....
जवाब देंहटाएंgahan bat kahi ...!!
जवाब देंहटाएं