सोमवार, जनवरी 09, 2012

हास्य कवि और उनकी कविता (दूसरी कड़ी )


अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ  साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |


चौराहे पर एक बुढ़िया,
भागी चली जा रही थी |
उसके ठीक पीछे ट्रेफ़िक पुलिस,
सीटी बजा रही थी |
पुलिस वाला चिल्लाया ,
अंधी है क्या ,जो देखती नहीं
बहरी है क्या ,जो सीटी की आवाज  नहीं आती
बुढ़िया बोली ना अंधी हूँ ना बहरी
बस हो गयीं बूढ़ी|
यही सीटी की आवाज,
अगर चालीस साल पहले आती |
तो एक ही बार में पलट कर आती |

26 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रोचक हास्य रचना,....मजा आ गया
    welcom to--"काव्यान्जलि"--

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  2. जीवन की स्थितियां हैं यह ....वक़्त - वक़्त की बात है ...!

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  3. लेकिन लतीफे को पंक्तिबध करके उसको
    कविता का रूप देना कोनसा आसान काम है .
    बहुत खुबसूरत लिखा आपने.

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  4. :) सही है वक्त-वक्त की बात है। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  5. मज़ा आ गया पढ़ के ...हा ..हा.. हा ..!

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  6. वाह ! बहुत खूब..इसी तरह हंसाते रहें..

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  7. सुन्दर ,रोचक लेकिन अर्थपूर्ण रचना ....

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  8. वाह एक और हास्य कविता... मस्त !! :)

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  9. अकल की अंधी- उसे सीटी सीटी का भी अंतर नहीं मालूम अभी तक। :)

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  10. बहुत खूब व्यंग्य भी विनोद भी विद्रूप भी पुलिसिया तंत्र का .

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  11. बहुत खूब व्यंग्य भी विनोद भी विद्रूप भी पुलिसिया तंत्र का .

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  12. कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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