अक्सर हास्य कवियों पर यह आरोप लगते है कि वह लतीफों को पंक्तिबद्ध करके रचनाएँ लिखते है | मगर मेरा मानना है कि हास्य कवि दोहरी भूमिका निभाता है | इस व्यथित समाज को हँसाने के साथ साथ सन्देश भी देता है |
चलिए एक आरोप और लगा दीजिये |
चौराहे पर एक बुढ़िया,
भागी चली जा रही थी |
उसके ठीक पीछे ट्रेफ़िक पुलिस,
सीटी बजा रही थी |
पुलिस वाला चिल्लाया ,
अंधी है क्या ,जो देखती नहीं
बहरी है क्या ,जो सीटी की आवाज नहीं आती
बुढ़िया बोली ना अंधी हूँ ना बहरी
बस हो गयीं बूढ़ी|
यही सीटी की आवाज,
अगर चालीस साल पहले आती |
तो एक ही बार में पलट कर आती |
हा हा हा हा, रोचक
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा ...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाकई मजेदार. हा हा हा.
जवाब देंहटाएंहा हा हा , मजेदार
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति बढ़िया रोचक हास्य रचना,....मजा आ गया
जवाब देंहटाएंwelcom to--"काव्यान्जलि"--
जीवन की स्थितियां हैं यह ....वक़्त - वक़्त की बात है ...!
जवाब देंहटाएंलेकिन लतीफे को पंक्तिबध करके उसको
जवाब देंहटाएंकविता का रूप देना कोनसा आसान काम है .
बहुत खुबसूरत लिखा आपने.
हा ...हा ..हा..अच्छा है
जवाब देंहटाएं:) सही है वक्त-वक्त की बात है। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएं:):) बढ़िया
जवाब देंहटाएंमजेदार,हास्य रचना
जवाब देंहटाएंमजेदार.......
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया पढ़ के ...हा ..हा.. हा ..!
जवाब देंहटाएंमजेदार:)
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत खूब..इसी तरह हंसाते रहें..
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत||
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,रोचक लेकिन अर्थपूर्ण रचना ....
जवाब देंहटाएंवाह एक और हास्य कविता... मस्त !! :)
जवाब देंहटाएंअकल की अंधी- उसे सीटी सीटी का भी अंतर नहीं मालूम अभी तक। :)
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंmaja aa gaya sir
बहुत सुंदर प्रस्तुति,रोचक मजेदार बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंwelcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
हा हां हां हाह - - - मजेदार.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब व्यंग्य भी विनोद भी विद्रूप भी पुलिसिया तंत्र का .
जवाब देंहटाएंबहुत खूब व्यंग्य भी विनोद भी विद्रूप भी पुलिसिया तंत्र का .
जवाब देंहटाएंachcha likha aap ne,.....:) :)
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
जवाब देंहटाएं