मंगलवार, मई 08, 2012

आख़िर ऐसा क्यों हुआ ...............

उसका नाम था अनुपमा , देखने में आकर्षक व्यक्तिव और उम्र लगभग चालीस साल परिवार 
के नाम पर दो बच्चे और पति ।वह एक निजी कंपनी में स्टेनो के पद पर कार्य करती थी ।
उसके पति एक कंपनी में इंजिनियर थे ।अच्छा वेतन, कोठी, कार,या यूँ कहें की खुश रहने    के मापदंडों के काफी करीब था वह परिवार .......अनुपमा के परिवार में दो छोटी 
बहिनें मां  और पिता जी मान एक स्कुल में अध्यपिका थीं और पिता जी आर्मी के 
रिटायर कैप्टन जो पेंशन  के साथ साथ शराब की आदत भी अपने साथ लाये थे । रोज़ 
किसी ना किसी बहाने से मां  के साथ लड़ाई गाली  गलौज होना निश्चित था ।या यूँ कहें 
यह  भी दिनचर्या का एक हिस्सा था ।यह देख कर अनु को बहुत कोफ़्त होती थी क्या दो 
चुटकी सिंदूर मांग में भर देने से पुरुष को अत्याचार करने का अधिकार यह समाज क्यों 
दे देता हैं। उसे सबसे ज्यादा गुस्सा अपनी माँ पर आता जो रात की पिटाई को सुबह भूलने 
की आदी हो चुकी थी उस पर निर्जल व्रत रख कर सज धज कर करवाचौथ के दिन उसकी 
आरती उतारती .....मैं अनुपमा की पति को जानता  था एक हंसमुख इंसान जो हर बात 
पर जोक सुनाता हो और शेर ओ शायरी में अच्छी दखलंदाजी रखता हो ।अनुपमा की सारी 
बातें उसी ने मुझें बताई थीं ।
एक दिन अनुपमा मुझे मिली वह थोड़ी उदास लग रही थी मैंने पूछा "क्या बात हैं कुछ 
झगडा हुआ क्या ? वह बोली क्या  बताऊँ भाई साहेब मुझे ऐसा लगता हैं कि आजकल 
वह मुझे इग्नोर कर रहें  हैं।यह मैं किसी कीमत पर सहन नहीं कर सकती और वह गुस्से 
में कापने लगी । मैंने किसी तरह समझा बुझा कर घर भेजा और अगले दिन उसके पति 
से बात करने का मन बना लिया ।ऑफिस में इधर उधर की बात करने के बाद मैंने उससे 
अनुपमा की बात की वह अचानक ही संजीदा हो गया और कहने लगा तुमको तो मालूम ही 
हैं आजकल मंदी चल रही हैं और मेरी नौकरी गए हुए एक महिना हो गया यह बात मैंने 
अनु को नहीं बताई ।कल ही उसको बताया की मेरी नौकरी चली गयी उसने हंस कर कहा 
यह तुम्हारी समस्या है जिसका हल तुम्हें निकालना  हैं। मैं कुछ नहीं जानती ।
          कुछ दिनों बाद मेरे दोस्त से फिर मुलाकात हुई मैंने हालचाल पूछा उसने 
कहा सब ठीक हैं  पर अनु मुझे छोड़ कर चली गयी । मै सन्न रह गया ।
उसने हंस कर कहा यार एक शेर नहीं सुनोगे 
बागबां  ने जब लगायी मेरे नशेमन में आग़ 
जिनपे तकिया था वही  पत्ते हवा देने लगे ।
एक बार फिर वह हंस कर बोला दाद नहीं दोगे मै  स्तब्ध था और निशब्द .......

       
 ( पुन: सम्पादित रचना ) 
                 
      

मंगलवार, मई 01, 2012

शुक्र है कि टौमी बच गया ....(लघुकथा)

चमचमाती कार बंगले  के अन्दर तेज़ गति से घुसी और अचानक ही ड्राइवर ने  ब्रेक लगा 
कर कार रोक दी क्योंकि कार के आगे साहेब का विदेशी कुत्ता टौमी आ गया था ।
ड्राइवर ने किसी तरह टौमी को बचा दिया ।मगर इस हादसे में घर में काम करने वाली 
आया का चार साल के  बच्चे  को चोट आ गयी ।साहेब ने जल्दी से कार से उतर कर  
आये और आया  को सौ रुपये दिए और कहा जाओ इसकी मलहम पट्टी करवा लो ।
थोड़ी देर बाद घर कें अंदर सबके चेहरे  खिले हुए थे और जुवान पर एक बात थी ।
भगवान का शुक्र है कि टौमी बच गया ......